भारतीय न्याय व्यवस्था में उन्मोचन (Discharge) एक legal process है जिसमें Court आरोपी (accused) को आरोपों से मुक्त (Free) करता है, जब अभियोजन (Prosecution) पक्ष पर्याप्त सबूत (evidence) पेश नहीं कर पाता है या जब आरोपों के समर्थन में कोई आधार नहीं होता है।
व्यक्ति को कब उन्मोचित किया जा सकता है
1. अपर्याप्त सबूत (Insufficient evidence):- जब अभियोजन पक्ष आरोपों के समर्थन में पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाता है।
2. आरोपों की अनुपस्थिति (Absence of charges):- जब आरोपों के समर्थन में कोई आधार नहीं होता है।
उदहारण:-
रोहन पर पड़ोसी के घर से चोरी का आरोप लगा। अभियोजन पक्ष ने गवाहों के बयान और परिस्थितिजन्य साक्ष्य पेश किए, लेकिन प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं था। न्यायालय ने पाया कि साक्ष्य अपर्याप्त हैं और रोहन को उन्मोचन दे दिया। इसका मतलब है कि रोहन को आरोपों से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन मुकदमा अभी समाप्त नहीं हुआ है। उन्मोचन एक कानूनी प्रक्रिया है जो आरोपी को आरोपों से मुक्त करने में मदद करती है जब अभियोजन पक्ष पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाता है।
उन्मोचन और बरी होने में अंतर - Difference between discharge and acquittal
1. उन्मोचन(discharge):- आरोपों के समर्थन में पर्याप्त सबूत नहीं होने पर आरोपी को मुक्त किया जाता है, लेकिन यह दोषसिद्धि या निर्दोषता पर निर्णय नहीं होता है।
2. बरी होना (acquittal) : आरोपी को दोषी नहीं पाए जाने पर बरी किया जाता है, जिसमें आरोपों की जांच और विचारण होता है और दोषसिद्धि या निर्दोषता पर निर्णय होता है। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।