यदि यही काम किसी बिल्डर ने किया होता तो उसके खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज हो जाता लेकिन सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की टीम ने किया है, इसलिए ग्राहक हाथ में रजिस्ट्री लिए, धोखाधड़ी करने वाले अधिकारियों के चक्कर लगा रहा है। कृपया नोट करें कि, नगर निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के लिए अंतिम रूप से नगर निगम के कमिश्नर जिम्मेदार होते हैं।
मामला क्या है
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में नगर निगम द्वारा रानी अवंती बाई, ट्रांसपोर्ट नगर, कोकता बायपास, भोपाल योजना के अंतर्गत प्लॉट की नीलामी की गई थी। दिनांक 2 अगस्त 2023 को ई-टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से नीलाम संपन्न की गई थी। श्री विवेक पालीवाल ने भूखंड क्र. -58, सेक्टर-B (क्षेत्रफल 249 वर्गमीटर) के लिए बोली लगाई और नगर निगम द्वारा प्लॉट की नीलामी श्री विवेक पालीवाल के नाम कर दी गई। प्लॉट के पूरे पैसे प्राप्त करने के बाद नगर निगम ने दिनांक 3 जनवरी 2025 को रजिस्ट्री (क्रमांक MP059712025A1007454) करवा दी। इसके साथ ही नगरनिगम अधिकारियो द्वारा सम्पत्तिकर तथा लीज रेंट की राशि भी जमा कराई गई। लेकिन प्लॉट का पजेशन नहीं दिया गया।
ग्राहक श्री विवेक पालीवाल द्वारा इस बारे में पत्राचार किया गया परंतु नगर निगम की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया। बाद में जब श्री विवेक पालीवाल प्रॉपर्टी रजिस्ट्री में दर्ज एड्रेस पर पहुंचे तो पता चला कि इस प्लॉट पर तो 'चाँद सिंह कालशी' नामक एक व्यक्ति ने कब्जा किया हुआ है। जबकि प्लाट की रजिस्ट्री के फोटोग्राफ्स में प्लाट खाली दिख रहा है। श्री विवेक पालीवाल ने तत्काल नगर निगम की सहायक आयुक्त एकता अग्रवाल से संपर्क किया। सुश्री एकता अग्रवाल ने ही श्री विवेक अग्रवाल के साथ प्रॉपर्टी की डील फाइनल की थी। उन्होंने ही प्रॉपर्टी रजिस्ट्री करवाई और उन्होंने ही प्रॉपर्टी टैक्स एवं प्रॉपर्टी लीज रेंट जमा करवाया था।
सहायक आयुक्त एकता अग्रवाल ने विवेक पालीवाल को बताया कि, पूर्व में चाँद सिंह कालशी को यह प्लॉट आवंटित किया गया था परंतु उन्होंने आवंटन की शर्तों का पालन नहीं किया इसलिए उनका आवंटन रद्द कर दिया गया है। यह भी कहा गया कि यदि उन्होंने प्लाट खाली नहीं किया है तो यह अवैध अतिक्रमण है और उसे हटा दिया जाएगा, लेकिन आज दिनांक नगर निगम ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की है। ग्राहक श्री विवेक पालीवाल लाखों रुपए भुगतान करने के बाद भी परेशान हो रहे हैं।
कुछ सवाल जिनके जवाब जरुरी है
- जब प्लॉट पर किसी दूसरे व्यक्ति का कब्जा है तो रजिस्ट्री में खाली प्लॉट के फोटो कैसे आए।
- जब नगर निगम की प्रॉपर्टी पर किसी और कार्यक्रम था तो नगर निगम ने उसे नीलम क्यों किया।
- ग्राहक द्वारा अतिक्रमण की जानकारी देने के बाद भी अतिक्रमण क्यों नहीं हटाया जा रहा है।
बताया गया है कि अतिक्रमण करने वाला "चांद सिंह" नगर निगम का प्राइवेट आदमी है। क्या नगर निगम किसी माफिया की तरह काम कर रहा है। ताकि लोगों को नीलामी के जरिए अपनेजाल में फंसाकर काली कमाई की जा सके।
यदि यही काम किसी प्राइवेट बिल्डर द्वारा किया गया होता तो अब तक उसके खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज हो चुका होता। पिछले दिनों पद के दुरुपयोग का ऐसा ही एक मामला हाई कोर्ट में प्रस्तुत हुआ था। हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को आदेश दिया है कि, पीड़ित व्यक्ति द्वारा कलेक्टर से की गई शिकायत को FIR मानकर आरोपी अधिकारी के खिलाफ इन्वेस्टिगेशन करें और सक्षम न्यायालय में चार्ज शीट पेश करें। सवाल यह है कि क्या हर व्यक्ति को नियम के अनुसार अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ेगा।