मध्यप्रदेश साप्ताहिक घटनाओं का रोज़नामचा - आग माचिस में नहीं, ज़ुबानों में है ✒ हरीश मिश्र

Bhopal Samachar
0
"माचिस की डिब्बी में आग नहीं होती, आग तीलियों के सिरों पर लगे पोटैशियम क्लोरेट और डिब्बी के किनारे पर मौजूद लाल फास्फोरस में होती है। दोनों को रगड़ने पर अग्नि उत्पन्न होती है। माचिस का उपयोग मुख्यतः आग जलाने के लिए किया जाता है। मुल्ला-मौलवी सबाब के खिलाफ मौन हैं और राजनेता तलवे से ज़ुबान रगड़कर प्रदेश के सुख-चैन में आग लगा रहे हैं।

पिछले सप्ताह ऐसा समय देखा- किसानों को माचिस की तीली से नरवाई जलाते और पड़ोसी किसान की आँखों में आग के कारण आँसू छलकते, सपने टूटते देखे। नरेन्द्र सलूजा का यूं चला जाना कांग्रेस-भाजपा के मित्रों को झुलसा गया। नरपिशाचों को प्रेम में सवाब मिला, न्याय के मंदिर में लात-घूंसे चले और पुलिस कप्तान के हाथ में चप्पल देखी गई। भाजपा के सांसदों, मंत्रियों और विधायकों की जिह्वा पर पोटैशियम क्लोरेट, तो कांग्रेस विधायकों की टोपी पर फास्फोरस के रासायनिक स्पर्श से प्रदेश को झुलसते देखा। सूरज ने तपाया, आंधी-तूफान और ओले-बारिश ने तापमान को गिराया। कुल मिलाकर, यह सप्ताह राजनीतिक और मजहबी रगड़ में प्रदेश को झुलसाने वाला रहा। कोई प्रेम में जला, कोई मजहब में, और कोई सत्ता की हवस में - कुल मिलाकर प्रदेश सुलगता रहा। तीलियों की गिनती कौन करे, जब हर ओर आग ही आग हो।

रायसेन की एक महिला उप-निरीक्षक की ज़िंदगी "लव जिहाद" के लावा में झुलस गई। यह अकेला मामला नहीं था— भोपाल की सड़कों पर उमड़े हिंदू समाज के आक्रोश के पीछे भी एक स्त्री की चीख, उसके शरीर पर टूटते नरपिशाचों के पंजे, और न्याय व्यवस्था की निष्क्रियता का आक्रोश छिपा था। इन दिनों नरपिशाच स्त्री के शरीर को नोचते हैं और मजहबी लिबास में सबाब ढूंढ़ते हैं। दुर्भाग्य यह कि हर ईमान को धारण करने वालों की ज़ुबान इस अनैतिकता पर खामोश है, अंग-भंग ईमान की भाषा नहीं बोल रहे, बल्कि पाप की निंदा करने में भी संकोच कर रहे हैं। यही चुप्पी, यही पक्षपात—मजहबी-धार्मिक ताप को बढ़ा रहा है। 

हिंदू स्वभाव से कभी साम्प्रदायिक नहीं रहा। वह तो सहिष्णुता, समरसता और शांति का प्रतीक रहा है। लेकिन आज़ादी के बाद की सरकारों की पक्षपाती नीतियों ने संतुलन बिगाड़ा है। अब परिणाम सामने है — मौन रहने वाला हिंदू मुखर हो गया है। उसकी वाणी अब मधुर नहीं, आग बन चुकी है। 'विश्वास' जैसे मधुर नाम अब सारंगी नहीं बजाते, वे घनघोर गरजते हैं—"गोली पाँव पर नहीं, छाती पर मारनी थी।" 

न्याय के मंदिर में जब विधि का पालन करने वाले अधिवक्ताओं ने दुष्कर्मियों को देखा, तो क्रोध में विवेक छूट गया। वे चिंघाड़ उठे, लात-घूंसे बरसाए। यह न्याय की परिभाषा नहीं, पर यह भाव समाज की पीड़ा को उघाड़कर रख देता है। संविधान कहता है, अपराधी को दंड विधि सम्मत हो, लेकिन धर्म की दृष्टि कहती है—ऐसे निशाचरों के सिर, भुजदंड, छाती और चरण काट देना ही धर्म संगत है।

यह वह दौर है जहां माचिस की तीली में नहीं, सोच में आग सुलग रही है। यदि समाज, शासन और धर्मगुरु अब भी मौन रहे, तो यह आग सिर्फ दिलों को नहीं, देश को भी झुलसा देगी। 

शब्दभेदी बाण दोनों ओर से चल रहे हैं, लेकिन बाण छोड़ने से पहले विवेक का उपयोग आवश्यक है।
सांसद आलोक शर्मा का यह कहना कि "मेरा जन्म दाढ़ी-टोपी वालों से निपटने के लिए हुआ है"—निश्चित रूप से एक नामुनासिब बयान है। वहीं दूसरी ओर, आरीफ़ मसूद की यह प्रतिक्रिया कि दाढ़ी-टोपी वालों ने ही देश को आज़ाद कराया। अनुचित है! आज़ादी की जंग में सभी धर्म और मजहब का योगदान है। ऐसी बहस अनुचित है।

चंबल के बीहड़ शांत हैं, लेकिन गुंडे सड़कों पर और पुलिस कक्षों में उबाल पर हैं। भिंड में विधायक अंबरीष शर्मा के हाथ में बंदूक देखकर गुंडों को भागते देखा गया, वहीं दूसरी ओर खबरों से असहमत पुलिस अधीक्षक द्वारा पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार की घटना सामने आई है।

खबरों से असहमति का अधिकार सबको है। यदि किसी समाचार से प्रतिष्ठा को क्षति पहुंची है, तो न्यायालय या प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता है। लेकिन किसी पत्रकार के गाल पर चप्पल मारना—यह लोकतंत्र के ताबूत में अंतिम कील ठोकने जैसा है।

प्रवेश उत्सव की धूम के बाद खरगोन के एकलव्य स्कूल में प्राचार्य और लाइब्रेरियन में मारपीट देखी, स्कूलों में यह आचरण निंदनीय है।

सरकार को मतभेदों को कलह का रूप देने वालों पर रोक लगानी होगी। वंदनीय जन जब वस्तुस्थिति को सद्भाव से नहीं देख सकते, यह देखने समझने का सामर्थ्य खो चुके हों तब सरकार को सख्त रुख अपनाना चाहिए। क्योंकि अग्नि का गुणधर्म ही यही है कि वह घास फूस से लेकर लोहे जैसे धातु को भी भस्म कर देती है। इसलिए इस आग को मोहन सरकार को रोकना होगा।लोगों का जीवन बेहतर बनाना होगा, जो सरकार की जवाबदेही है।
लेखक (स्वतंत्र पत्रकार)। 
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

Post a Comment

0 Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!