परिवीक्षाधीन शिक्षक या कर्मचारियों की सेवा समाप्ति मामले में हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण जजमेंट पढ़िए

उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट ने परिवीक्षाधीन शिक्षक या कर्मचारियों की सेवा समाप्ति मामले में महत्वपूर्ण डिसीजन दिया है। सामान्य तौर पर परिवीक्षाधीन कर्मचारियों को बार-बार सेवा समाप्ति की धमकी देकर प्रेशर बनाया जाता है और कई बार नियम विरुद्ध काम भी करवाए जाते हैं। यह डिसीजन उन सभी पीड़ित परिवीक्षाधीन कर्मचारियों की रक्षा करने वाला है। 

शिक्षक संजय कुमार सेंगर बनाम उत्तर प्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पी.टी. शिक्षक संजय कुमार सेंगर की बर्खास्तगी को गैरकानूनी घोषित कर उनकी reinstatement का आदेश दिया है। साथ ही, शिक्षक को पांच लाख रुपये बकाया salary देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बकाया salary की राशि राज्य सरकार प्रबंधन समिति से वसूल कर सकती है। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति पीके गिरी की अदालत ने हाथरस के एक स्कूल में कार्यरत probationary पी.टी. शिक्षक संजय की special appeal पर दिया, जिसमें उन्होंने एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी थी। 

संजय सेंगर को 2 जनवरी 2006 को probationary पी.टी. शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था।उनकी एक साल की probation अवधि 3 जनवरी 2007 को खत्म होनी थी, लेकिन प्रबंधन समिति ने बिना उचित प्रक्रिया के, मनमाने तरीके से उनकी सेवाओं की पुष्टि नहीं की और probation अवधि बढ़ा दी। जिला स्कूल निरीक्षक, हाथरस ने इस फैसले को खारिज करते हुए इसे गैरकानूनी और उत्पीड़न की मंशा वाला बताया और सेवाओं की पुष्टि का आदेश दिया।

इसके बावजूद, प्रबंधन ने सेंगर पर misconduct का आरोप लगाकर charge sheet जारी की और बिना सुनवाई के एकतरफा जांच कर 26 नवंबर 2007 को उनकी services समाप्त कर दीं। इस आदेश को बर्खास्त शिक्षक ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। अदालत ने पाया कि charge sheet का जवाब देने के बावजूद संजय को जांच report नहीं दी गई और उन्हें अपनी सफाई का मौका नहीं मिला, जो natural justice के सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि जहां कर्मचारी की बर्खास्तगी विशिष्ट आरोपों पर आधारित हो, वहां उचित जांच जरूरी है, भले ही कर्मचारी probation पर हो। 

अदालत ने एकल जज के इस निष्कर्ष से असहमति जताई कि यह unsatisfactory performance के कारण probationary कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने का मामला था। कोर्ट ने माना कि यह misconduct का मामला था और प्रबंधन का इरादा किसी भी तरह से अपीलकर्ता की सेवाएं खत्म करना था, जबकि आरोप गंभीर नहीं थे। 

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