श्री राम भक्त हनुमान के बारे में 11 ऐसी बातें जो लोग नहीं जानते - 11 Unknown stories of Hanuman ji

श्री तुलसीकृत श्रीरामचरितमानस में हनुमानजी की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। मानस का कथानक उनके आसपास ही घूमता रहता है। हनुमानजी के बिना श्रीराम का अपने लक्ष्य तक पहुँचने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है क्योंकि श्रीराम यहाँ भगवान नहीं वरन् मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अपने भक्तों के सम्मुख उपस्थित होते हैं। 

आनन्द रामायण के अनुसार हनुमानजी की बाल्यावस्था 

सर्वप्रथम हम हनुमानजी की बाल्यावस्था की चर्चा करेंगे। आनन्द रामायण के अनुसार एक बार भगवान शिव श्रीरामजी का बाल रूप देखने के लिए मदारी बनकर अयोध्या पधारे। उनके साथ वानर रूप में हनुमानजी भी आए। भगवान राम वानर रूप हनुमानजी को प्राप्त करने के लिए मचलने लगे। दशरथजी ने मदारी बने शिव से वानर रूप धारी हनुमानजी को क्रय कर लिया। हनुमानजी तब तक अयोध्या में बालक श्रीराम के साथ रहे जब तक वे गुरु वसिष्ठ के साथ विद्याध्ययन तथा यज्ञ रक्षा के लिए नहीं गए। 

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार हनुमानजी नटखट तथा शैतान थे। मतंग आदि ऋषियों ने उन्हें शाप दिया था, जिससे वे अपनी शक्ति भूल गए थे। किष्किन्धा कांड में जामवन्त जी ने उन्हें अपनी शक्ति का स्मरण कराया-
कवन सो काज कठिन जग माहीं।
जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।5।।
राम काज लगि तव अवतारा।
सुनतहि भयउ पर्वताकारा।।६।।
(श्रीराम व.मा. किष्किन्धा काण्ड दो. २९)

माता सीताजी का पंचवटी में रावण द्वारा हरण होने पर श्रीराम और लक्ष्मण उन्हें खोजते हुए वनों में घूमते हैं और वनस्पति सम्पदा से पूछते हैं-
हे खग! मृग! हे मधुकर श्रेणी।
तुम देखी सीता मृगनयनी।।
(श्रीरामचरितमानस अरण्यकाण्ड २९/५)

घूमते हुए वे ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचते हैं। बालि से भयभीत सुग्रीव उन्हें दूर से देखता है तो हनुमानजी से कहता है कि तुम जाकर पता लगाओ कि ये कोई गुप्तचर तो नहीं हैं। हनुमानजी एक विद्वान ब्राह्मण का रूप धारण कर दोनों भाइयों से संस्कृत भाषा में संभाषण करते हैं। उनकी संभाषण कला से श्रीराम बहुत प्रभावित हुए। श्रीराम और लक्ष्मण उन्हें अपना परिचय देते हुए कहते हैं हम दोनों भाई राजा दशरथ के पुत्र हैं-
कोसलेस दसरथ के जाए। हम पितु बचन मानि बन आये।
नाम राम लछिमन दोउ भाई। संग नारि सुकुमारि सुहाई।।
(श्रीरामचरितमानस किष्किन्धाकाण्ड ९/९)
इहां हरी निसिचर वैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।।
(श्रीरामचरितमानस किष्किन्धा काण्ड १/२)
हनुमानजी ने उन दोनों को पहिचान लिया-
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना।।
(श्रीरामचरितमानस किष्किन्धाकाण्ड दो. १/३)

सिंहिका और सुरसा के साथ विशिष्ट प्रसंग

श्रीलंका के लिये प्रस्थान करते हुए हनुमानजी को समुद्र लाँघना पड़ा। वहाँ उनकी भेंट सिंहिका से होती है। वह उड़ते हुए प्राणी की परछाई देखकर उनका भक्षण कर लेती थी। उसने हनुमानजी को भी खा लिया। हनुमानजी ने उसके पेट में विशाल रूप धारण कर लिया और उसका पेट फाड़कर बाहर आ गए।

सुरसा नागों (सर्पों) की माता थी। हनुमानजी को उसने समुद्र में देखा तो वह अपना विशाल मुँह खोलकर सामने आ गई। हनुमानजी ने भी अपना विशाल मुँह खोला और अपना रूप भी विशाल कर दिया। फिर लघु रूप धारण कर उसके मुँह से बाहर आ गए। चतुर हनुमानजी को देखकर वह प्रसन्न हो गई। उसने श्रीराम के कार्य में बाधा न डालने का विचार कर उन्हें आगे जाने दिया।

समुद्र लाँघने के पश्चात् हनुमानजी एक ब्राह्मणों के वेश में विभीषण से मिले-
बिप्र रूप धरि बचन सुनाए।
सुनत विभीषण उठि तहँ आये।।
अशोक वाटिका में वे वृक्ष पर लघु रूप में बैठे।

उत्तरकाण्ड में भरत के सामने ब्राह्मण रूप में गए। अहिरावण जब श्रीराम-लक्ष्मण को उठा कर पाताल लोक में ले गया तो उन्हें खोजने के लिए, हनुमानजी ने पंचमुखी हनुमान का रूप धारण किया। उज्जैन में बड़े गणेश मंदिर के समीप पंचमुखी हनुमानजी का मंदिर स्थित है। हनुमत कवच के वर्णनानुसार ये पाँच मुख निम्नानुसार है-
  1. पूर्व दिशा (वानर मुख) हनुमानजी
  2. पश्चिम दिशा (गरुड़ मुख) गरुड़
  3. उत्तर दिशा वराह
  4. दक्षिण दिशा (सिंहमुख) नरसिंह
  5. उर्ध्व दिशा (अश्व मुख) हयग्रीव
(हनुमान अंक-गीता प्रेस गोरखपुर ४९ वर्ष का विशेषांक)

हनुमत् रामायण, नाखूनों से हिमालय पर्वत पर रामायण लिखी

हनुमानजी ने वाल्मीकिजी से पूर्व रामायण लिखी थी। उस रामायण का नाम हनुमत् रामायण था। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार रावण वध के उपरान्त हनुमानजी श्रीराम से आज्ञा लेकर हिमालय चले गए। यहाँ वह तपस्या करने लगे। वहाँ उन्होंने शिवजी की आराधना की। श्रीराम का स्मरण करते हुए नाखूनों से पर्वत पर रामायण लिखी। वहाँ वाल्मीकिजी ने वह रामायण देखी। उन्हें लगा कि मेरी रामायण से यह रामायण ज्यादा अच्छी है। वाल्मीकिजी की व्यथा देखकर हनुमानजी को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने अपनी रामायण जो पर्वत पर उत्कीर्ण थी, उसे उठाई और समुद्र में विसर्जित कर दी।

हनुमानजी और भीम की कथा का विशिष्ट विवरण

एक बार महाभारतकाल में भीम के बल की परीक्षा लेने के लिए हनुमानजी शारीरिक रूप से कमजोर वृद्ध का रूप धारण कर रास्ते में लेट गए ओर अपनी बड़ी सी, मोटी सी पूँछ फैला कर रास्ते में रख दी और भीम से कहा कि मैं कमजोर हूँ, इसे उठा नहीं सकता। अत: आप ही इसे उठाकर रास्ते ने निकल जाइए। भीम प्रयत्न करने पर भी पूँछ नहीं हटा सके और उनका गर्व भंग हो गया?

हनुमानजी के छलांग रूप का विस्तृत वर्णन

१. बाल्यावस्था में माता अंजनि हनुमानजी को कुटिया में सुलाकर गई। बालक हनुमानजी की नींद खुली। उन्हें तेज भूख लग रही थी। आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखकर उसे लाल रंग का मीठा फल समझकर एक लम्बी छलांग लगाकर सूर्य को मुँह में रख लिया। पृथ्वी पर अँधेरा होने से हाहाकार मच गया।
२. जामवन्त ने जब उन्हें उनकी शक्ति याद दिलाई तो उन्होंने छलांग लगा कर समुद्र लाँघ दिया-
 सिंहनाद करि बारहिं बारा।
   लीलहिं नाघऊँ जल निधि खारा।।
(श्रीरामचरितमानस किष्किन्धाकाण्ड दो. २९/८) 
३. लक्ष्मणजी को शक्तिबाण लगने पर मूर्च्छित होने से सुषेण वैद्य के कहने पर द्रोणाचल पर्वत पर संजीवनी बूटी लेने गए। वे पर्वत सहित बूटी उठा लाए। हनुमानजी ने रास्ते में कालनेमि राक्षस का वध किया।
४. अहिरावण जब पाताल लोक में श्रीराम लक्ष्मण का हरण कर ले गया तब हनुमानजी छलांग लगाकर पाताल लोक पहुँच गए। विभीषण ने उन्हें यह रहस्य बतलाया। वहाँ हनुमानजी को उनका पुत्र मकरध्वज मिला। अहिरावण का वध कर मकरध्वज को वहाँ का राजा बनाया।

जब श्रीरामजी परमधाम जाते हैं तो वे भक्तों की सहायता के लिए पृथ्वी लोक पर श्री हनुमानजी को यहाँ का कार्य सौंप कर जाते हैं-
मत्कथा प्रचरिष्यति यावल्लोके हरीश्वर।
तावत् रमस्व सुप्रीतो मद् वाक्य मनुपालयन।।

भाव यह है कि जब तक मेरी कथा का प्रचार रहे तब तक तुम भी मेरी आज्ञा का पालन करते हुए प्रसन्नतापूर्वक यहीं विचरण करो।
यावद् रामकथा वीर चरिष्यति महीतले।
तावच्छरीरे वत्स्यन्तु प्राणा मम न संशय:।।
(वाल्मीकिरामायण उत्तरकाण्ड ४०/१७)

वीर श्रीराम इस पृथ्वी पर जब तक रामकथा प्रचलित रहे तब तक मेरे प्राण इस शरीर में बने रहें।
यत्र यत्र रघुनाथ कीर्तनं
तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम्।
वाष्पवारि परिपूर्ण लोचनं
मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्।।

MORAL OF THE STORY

कई प्रदेशों में हनुमानजी का बालाजी रूप में पूजन किया जाता है। वर्तमान समय की पीढ़ी को हनुमानजी द्वारा धारण किए गए ये विभिन्न रूप इस बात की ओर इंगित करते हैं कि व्यक्ति को परिस्थिति के अनुसार अपने स्वभाव, कार्य और व्यवहार में परिवर्तन कर लेना चाहिए, ताकि उसे अपने कार्य में सफलता प्राप्त होती रहे और वह अपने लक्ष्य को सरलता से प्राप्त कर सके। जय श्री हनुमान्-
मनोजवं मारुत तुल्यं वेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं
श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।।
(श्रीरामरक्षास्तोत्रम्) 
डॉ. शारदा मेहता, उज्जैन (म.प्र.)

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