जंगल में आग की घटनाएं, गर्मी के मौसम में तब होती है जब, तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है और प्रकाश के परावर्तन के कारण सूखे पत्ते एवं झाड़ अपने आप जल जाते हैं लेकिन लॉस एंजेलिस में भीषण आग लगने की घटना ठंड के मौसम में हुई है। दुनिया भर के लोग जानना चाहते हैं कि ऐसी क्या परिस्थितियों बन गई थी जो, जंगल में लगी आग हॉलीवुड तक पहुंच गई और कम से कम 10000 घर तबाह हो गए। लाखों लोगों को शहर छोड़ कर जाना पड़ा।
लॉस एंजेलिस में आग के फैलने के कारण
वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (WWA) की हालिया रिपोर्ट बताती है कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन ने इस आपदा को और घातक बना दिया। वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते तेल, गैस और कोयले के अत्यधिक उपयोग से, आग के लिए अनुकूल गर्म, शुष्क और तेज़ हवाओं वाले हालात 35% अधिक संभावित हो गए हैं। अक्टूबर-दिसंबर के बीच होने वाली बारिश में भारी कमी देखी गई है, जिससे सूखी वनस्पति ज्वलनशील बन रही है। यह कमी अब पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में 2.4 गुना अधिक संभावित है। आग के अनुकूल स्थितियां अब हर साल लगभग 23 दिन अधिक समय तक बनी रहती हैं, जिससे सर्दियों में भी जंगल की आग का खतरा बढ़ गया है।
Los Angeles Fire - Expert Opinion
इंपीरियल कॉलेज लंदन के सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल पॉलिसी की डॉ. क्लेयर बार्न्स का कहना है, "जलवायु परिवर्तन ने इन आगों के जोखिम को और अधिक बढ़ा दिया है। सर्दियों में सूखा और तेज़ हवाएं, जो पहले कम होती थीं, अब जंगल की आग को बड़े पैमाने पर फैलाने में अहम भूमिका निभा रही हैं।"
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया के प्रोफेसर पार्क विलियम्स ने इस घटना को "परफेक्ट स्टॉर्म" कहा। उन्होंने कहा, "तेज़ हवाएं, सूखी वनस्पतियां, और शहरी क्षेत्रों में आग का प्रवेश एक ऐसी स्थिति पैदा करते हैं जहां नुकसान को नियंत्रित करना लगभग असंभव हो जाता है।"
हॉलीवुड में लगी आज कितनी भयंकर थी
इस आग की शुरुआत 7 जनवरी को हुई, जब सांता आना पहाड़ियों से चलने वाली तेज़ हवाओं ने सूखी घास और झाड़ियों को जलाने में मदद की। आग तेजी से शहरी क्षेत्रों में फैल गई, जिससे लाखों लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ गई। 28 लोगों की मौत में से 17 मौतें वेस्ट ऑल्टाडेना इलाके में हुईं, जहां चेतावनी प्रणाली में देरी दर्ज की गई। आग ने शहरी इलाकों में प्रवेश करके 10,000 से अधिक घरों को नष्ट कर दिया। विषैली धुएं की वजह से वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर तक गिर गई, जिससे लाखों लोगों की सेहत पर असर पड़ा।
समाधान की दिशा में कदम
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने और नुकसान कम करने के लिए:
1. जल वितरण प्रणाली को मजबूत करना: ईटन और पालिसैड्स क्षेत्रों में पानी की कमी ने आग बुझाने के प्रयासों को बाधित किया।
2. हाई-रिस्क इलाकों में निर्माण के मानक: घरों को आग-रोधी डिज़ाइन के साथ बनाना होगा।
3. प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में सुधार: आग के खतरे वाले क्षेत्रों में तेजी से चेतावनी और निकासी सुनिश्चित करनी होगी।
जंगल की आग के लिए भविष्य की चेतावनी
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर वर्तमान दर पर जलवायु परिवर्तन जारी रहा, तो ऐसे हालात और गंभीर हो सकते हैं। 2100 तक तापमान 2.6°C बढ़ने की संभावना है, जिससे आग के लिए अनुकूल स्थितियां 35% अधिक बार हो सकती हैं।
डॉ. फ्रेडरिक ओटो ने चेताया, "चाहे यह विनाशकारी आग हो या भयंकर तूफान, जलवायु परिवर्तन के खतरनाक प्रभाव अब हर कोने में महसूस किए जा रहे हैं। अगर जीवाश्म ईंधनों का जलना बंद नहीं हुआ, तो आने वाले समय में हालात और बदतर होंगे।"
निष्कर्ष - जलवायु परिवर्तन अब वर्तमान का संकट है
लॉस एंजेलेस की इस आग ने दुनिया को एक और चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन अब केवल भविष्य की समस्या नहीं है, बल्कि वर्तमान का संकट है। अब समय आ गया है कि हम नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ें और एक सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करें।
जलवायु परिवर्तन और डॉ. अंजल प्रकाश का नज़रिया
“आपने कभी सोचा है, शहर सिर्फ ईंट-पत्थर की इमारतों और भीड़-भाड़ वाले बाजारों का नाम नहीं हैं। ये ज़िंदगियों के सपनों का कैनवास हैं। लेकिन ये सपने, जिनमें हम और आप जीते हैं, आज जलवायु परिवर्तन के साये में हैं। और एशिया के शहर तो इस बदलाव के केंद्र में खड़े हैं।”
ये कहना है डॉ. अंजल प्रकाश का जो न सिर्फ भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के निदेशक और इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, बल्कि जिन्हें ,प्रोफेसर अंजल प्रकाश का जिन्हें अभी हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन और शहरों पर अपनी आगामी विशेष रिपोर्ट के लिए मुख्य लेखक के रूप में नियुक्त किया है। प्रो. अंजल 150 जलवायु विशेषज्ञों के इस प्रतिष्ठित वैश्विक समूह को हिस्सा हैं।
अंजल प्रकाश की बातों में एक सहज गंभीरता होती है। वो ऐसा बोलते हैं कि लगता है जैसे कोई करीबी दोस्त हमें हमारी दुनिया के बदलते मौसम के किस्से सुना रहा हो। एक बातचीत में उन्होंने कहा, “देखिए, नेपाल का काठमांडू हो या भारत का मुंबई, बांग्लादेश का ढाका हो या चीन का शंघाई—हर शहर इस लड़ाई का हिस्सा है। फर्क बस इतना है कि सबकी चुनौतियां अलग-अलग हैं, लेकिन उनका दर्द एक जैसा है।”
नेपाल: हिमालय से पिघलती उम्मीदें
“काठमांडू को देखिए,” अंजल ने कहा, “यहां मौसम का मिज़ाज लगातार बिगड़ रहा है। ऊपर से हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। आपको पता है, ये सिर्फ बाढ़ और सूखे की समस्या नहीं है, यह उन किसानों के लिए जीवन-मरण का सवाल है जो इन नदियों के पानी पर पूरी तरह निर्भर हैं। और शहर के लोग? उनके लिए ये पिघलते ग्लेशियर सिर्फ खबरें नहीं, उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। पानी की किल्लत, अनियमित मौसम, और बाढ़ जैसे संकट उनके दरवाजे पर खड़े हैं। लेकिन उम्मीद की बात ये है कि नेपाल के लोग अब स्थायी जल प्रबंधन और हरित शहरीकरण जैसे उपायों पर ध्यान दे रहे हैं। बदलाव भले धीमा हो, लेकिन हो रहा है।”
भारत: महानगरों की लड़ाई
डॉ. अंजल ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “अब भारत के महानगरों की बात करें तो यह जलवायु परिवर्तन का एकदम सामने से सामना कर रहे हैं। मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे शहर—यहां की समस्याएं सिर्फ खबरों में सुर्खियां नहीं, यहां की असलियत हैं। अत्यधिक गर्मी, ऊष्णकटिबंधीय तूफान और बढ़ते जलस्तर ने न सिर्फ शहर के ढांचे को बल्कि वहां के लोगों की सेहत और आजीविका को भी झकझोर दिया है। पर अच्छी बात ये है कि भारत में ग्रीन बिल्डिंग्स बन रही हैं, अक्षय ऊर्जा का उपयोग बढ़ रहा है, और सार्वजनिक परिवहन को सुधारने की कोशिश हो रही है। ये छोटे-छोटे कदम आने वाले बड़े बदलावों की नींव रख रहे हैं।”
पाकिस्तान: कराची और जल संकट
“अब ज़रा पाकिस्तान के कराची को देखिए,” उन्होंने गंभीर होते हुए कहा। “यहां का तापमान बढ़ रहा है, मानसून अनियमित हो गया है, और पानी की कमी ने लोगों की ज़िंदगी को बेहद मुश्किल बना दिया है। कराची के बुनियादी ढांचे को बार-बार आने वाली बाढ़ ने कमजोर कर दिया है। लेकिन वहां भी लोग हरित वास्तुकला और बेहतर जल प्रबंधन की तरफ ध्यान दे रहे हैं। यह देखकर खुशी होती है कि लोग हार मानने के बजाय समाधान खोजने में जुटे हैं।”
बांग्लादेश: ढाका का संघर्ष
डॉ. अंजल ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “और ढाका? यहां की कहानियां सबसे ज्यादा दर्दनाक हैं। समुद्र का बढ़ता जलस्तर और बार-बार आने वाली बाढ़ ने यहां की ज़िंदगी को जैसे हिलाकर रख दिया है। लोग अपने घर खो रहे हैं, भोजन की कमी हो रही है, और स्वास्थ्य संकट बढ़ रहा है। लेकिन बांग्लादेश में सरकार और एनजीओ मिलकर बाढ़-प्रतिरोधी घर बना रहे हैं और सतत शहरी विकास की योजना पर काम कर रहे हैं। ये छोटे-छोटे प्रयास यहां के लोगों को जीने की एक नई उम्मीद दे रहे हैं।”
चीन: बीजिंग और शंघाई की कहानी
“चीन की कहानी थोड़ी अलग है,” उन्होंने समझाया। “यहां समस्या वायु प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की है। बीजिंग और शंघाई जैसे शहर तेजी से औद्योगिक विकास के चलते पर्यावरणीय संकट झेल रहे हैं। लेकिन चीन सरकार ने बड़े पैमाने पर कार्बन उत्सर्जन घटाने और नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाने के लिए ठोस कदम उठाए हैं। उनके शहरों में हरियाली बढ़ रही है और यह बाकी देशों के लिए एक प्रेरणा है।”
समावेशी प्रयासों की ज़रूरत
बात खत्म करते हुए डॉ. अंजल बोले, “देखिए, जलवायु परिवर्तन का सामना कोई अकेला देश या शहर नहीं कर सकता। यह सबकी साझी समस्या है, और समाधान भी साझे होंगे। हमें तकनीकी नवाचारों को अपनाना होगा, लोगों को जागरूक करना होगा और एक-दूसरे का सहयोग करना होगा। बेहतर शहरी नियोजन और समुदाय का सशक्तिकरण ही इस संकट का स्थायी समाधान है।”
डॉ. अंजल प्रकाश की बातों में न सिर्फ तथ्यों की गहराई है, बल्कि एक उम्मीद भी है। उनका मानना है कि अगर हम समय रहते सही कदम उठाएं, तो हमारे शहर जलवायु परिवर्तन की इस लड़ाई में विजयी हो सकते हैं। उनके शब्दों में, “शहर सपनों का केंद्र हैं, और अगर हम इन्हें जलवायु संकट से बचा सके, तो यही सपने हमारी अगली पीढ़ियों को एक बेहतर भविष्य देंगे।”