यदि आप अपने और अपनी फैमिली के लिए हेल्थ इंश्योरेंस लेने वाले हैं या फिर ले चुके हैं तो यह खबर आपके लिए महत्वपूर्ण है। इंश्योरेंस कंपनी ने एक डॉक्टर को 5 साल तक परेशान किया। 2018 में क्लेम लगाया था, बार-बार रिजेक्ट किया। उपभोक्ता फॉर्म में कैसे लगाया। वहां पर भी क्लेम देने को तैयार नहीं हुए। ऐसा चक्रव्यूह बिछाया कि, डॉक्टर के अलावा कोई और उससे निकल भी नहीं सकता था।
इंश्योरेंस कंपनी डॉक्टर की बात मानने को तैयार नहीं थी
मामला मध्य प्रदेश के इंदौर का है। डॉक्टर अजय कुमार जैन ने दिनांक 22 जून सन 2000 को स्वयं के एवं अपनी फैमिली के लिए ₹500000 की हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी ली थी। बाद में 10 लाख रुपए का टॉप अप भी करवाया। 18 साल तक नियमित रूप से प्रीमियम जमा करते रहे। सन 2018 में उनकी पत्नी को ब्रेस्ट कैंसर हो गया। ऐसे ही मौके के लिए हेल्थ इंश्योरेंस करवाया जाता है। उन्होंने इलाज करवाने के बाद हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम किया परंतु कंपनी ने रिजेक्ट कर दिया। उन्होंने तीन बार क्लेम किया, कंपनी ने तीनों बार रिजेक्ट कर दिया। फिर उन्होंने उपभोक्ता फोरम में दावा प्रस्तुत किया। यहां पर भी कंपनी ने क्लेम देने से मना कर दिया। ऐसी-ऐसी दलील प्रस्तुत की, कि कोई आम आदमी यहां तक की उपभोक्ता फॉर्म के विद्वान अध्यक्ष एवं सदस्य भी चकरा जाए। वह तो क्लेम करने वाला स्वयं डॉक्टर था, इसलिए अंत तक लड़ा। कोई आम आदमी तो लड़ भी नहीं सकता था। इंश्योरेंस कंपनी ने दलील ही ऐसी दी थी। सवाल यह है कि 18 साल तक प्रीमियम भरने के बाद भी यदि इंश्योरेंस कंपनियां इस स्तर तक बेईमानी करेंगी तो कोई हेल्थ इंश्योरेंस क्यों लेगा।
अब पढ़िए इंश्योरेंस कंपनी के कुतर्क
दिनांक 5 फरवरी 2019 को सबसे पहली बार मेडिक्लेम निरस्त करते हुए बताया कि, पॉलिसी के तहत 5 लाख का बीमा है। जिसका भुगतान किया जा चुका है।
- डॉ. जैन ने मूल बीमा पॉलिसी के साथ 10 लाख रुपए की टापअप पॉलिसी भी करवाई थी। मूल बीमार पॉलिसी के 5 लाख रुपए खत्म होते ही टापअप के रुपए मेडिकल खर्च के लिए उपलब्ध रहते हैं। कंपनी में जानबूझकर टॉप अप की जानकारी छुपाई। ताकि क्लेम ना देना पड़े।
कीमोपार्ट रिमूवल के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है, क्लेम रिजेक्ट
डॉ जैन ने टॉप अप की जानकारी देते हुए फिर से क्लेम किया तो दिनांक 9 अप्रैल 2019 को क्लेम को रिजेक्ट करते हुए कंपनी ने कहा कि, कीमोपार्ट रिमूवल के लिए अस्पताल में भर्ती होना जरूरी नहीं है। बिना भर्ती हुए भी ये प्रक्रिया की जा सकती है।
- बीमा कंपनी ने ये माना कि कीमोपार्ट रिमूवल की प्रक्रिया पॉलिसी के तहत मान्य प्रक्रिया है। इसके लिए मरीज का अस्पताल में भर्ती होना जरूरी है या नहीं यह इलाज करने वाले डॉक्टर के परामर्श और पेशेंट की स्थिति पर निर्भर करता है। कंपनी कैसे निर्धारित कर सकती है कि किस इलाज के लिए भर्ती होना जरूरी है और किस इलाज के लिए नहीं।
तीसरी बार 2 मई 2019 को अलग वजह बताकर क्लेम निरस्त
डॉक्टर जैन ने साबित किया कि, इलाज के लिए भर्ती होना जरूरी था और फिर से क्लेम प्रस्तुत किया। इंश्योरेंस कंपनी ने फिर भी क्लेम रिजेक्ट कर दिया और कहा कि, इलाज के दौरान TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन दिया गया है। TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन के लिए भर्ती करना पॉलिसी के नियमों के अंतर्गत नहीं आता है। इसलिए इतने रिजेक्ट किया जाता है।
डॉक्टर ने उपभोक्ता आयोग में मामला दाखिल किया
डॉक्टर ने उपभोक्ता आयोग में मामला दाखिल करते हुए बताया कि, इलाज के लिए TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन दिया जाना बहुत जरूरी था। इंजेक्शन का इस्तेमाल कैंसर की बीमारी के इलाज के लिए किया गया था। दवाई का उपयोग स्तन कैंसर के मरीज के लिए जरूरी है। TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन के उपयोग से मरीज में बीमारी पुन: आने की संभावना काफी कम हो जाती है। लेकिन बीमा कंपनी डॉक्टर की बात मानने को तैयार नहीं थी।
आयोग के सामने भी कंपनी क्लेम देने को तैयार नहीं हुई
उपभोक्ता आयोग को कंपनी ने अपना जवाब सौंपा, जिसमें डॉ.सुधीर हकसर हमने बताया कि, कहा कि डॉ. जैन ने पत्नी को TRASTUZUMEB 400 MG इंजेक्शन देने के लिए अस्पताल में भर्ती किया। यह इंजेक्शन एंटी कैंसर इंजेक्शन नहीं है। यह स्टैंड अलोन बेसिस पर दिया गया है। लेकिन इस दवा के साथ कैंसर की कोई भी मूल दवा नहीं दी गई है। पॉलिसी के अनुसार ये इंजेक्शन मोनोक्लोनल एंटीबॉडी इंजेक्शन में सूचिबद्ध नहीं किया गया है। इंजेक्शन डे केयर प्रोसीजर के तहत दिया जाता है। इसलिए पेशेंट को भर्ती करना जरूरी नहीं है।
आगे पढ़ने से पहले रुक कर जरा सोचिए
जब कंपनी और कंपनी की ओर से अधिकृत डॉक्टर इस तरह की दलील देने लग जाए तो क्या आपके और हमारे जैसे लोग। दुकानदारी या प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग। इंजीनियर और चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसे प्रोफेशनल्स। इस दलील का सामना कर पाएंगे।
डॉक्टर की एक सवाल में कंपनी ढेर हो गई
जिस केस की हम स्टडी कर रहे हैं उसमें मामला दाखिल करने वाले अजय कुमार जैन स्वयं डॉक्टर है। इसलिए उन्होंने इस दलील का भी सामना किया। उन्होंने कंपनी से सिर्फ एक सवाल किया, क्या इंश्योरेंस कंपनी की ओर से दलील देने वाले डॉ.सुधीर हकसर, कैंसर स्पेशलिस्ट है। बस यहीं पर कंपनी की पोल खुल गई। जिस डॉक्टर को कैंसर की जानकारी नहीं है। वह कंपनी की तरफ से ऐसी दलील दे रहा था कि, उपभोक्ता तो दूर की बात आयोग चकरघिन्नी हो जाए।
फिर डॉक्टर जैन ने बताया कि, उनकी पत्नी का इलाज करने वाले डॉ. प्रकाश चेतलकर को ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का 25 साल का अनुभव है।
- उन्होंने बताया कि इंजेक्शन जरूरी है। उन्होंने बताया की भर्ती करना जरूरी है।
- उन्होंने बताया कि इंजेक्शन कीमोथैरेपी के साथ सहायक करने वाली जरूरी दवाई है, जो कैंसर रोगियों को दी जाती है।
- उन्होंने बताया कि इंजेक्शन कैंसर को बढ़ने से रोकने और जोखिम कम करने के लिए दिया जाता है। ये कैंसर के मरीज को ही दिया जाता है।
- उन्होंने बताया कि, समय के बदलाव के साथ इस प्रकार के इंजेक्शन ब्रेस्ट कैंसर मरीजों के लिए जीवन रक्षक दवाई है।
आयोग ने ये फैसला सुनाया
मामले में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग अध्यक्ष बलराज कुमार पालोदा ने फैसला सुनाया है। जिसके तहत बीमा कंपनी को अब फरियादी डॉ. अजय जैन को क्लेम की राशि 9 लाख 8 हजार 163 रुपए 7 प्रतिशत ब्याज के साथ 15 फरवरी 2021 से देने होंगे। साथ ही मानसिक त्रास के 25 हजार रुपए और केस खर्च के 5 हजार रुपए भी बीमा कंपनी को देने पड़ेंगे।
क्या कंपनी और डॉक्टर को दंडित नहीं करना चाहिए
सवाल फिर वही है, जब कंपनी और कंपनी की ओर से अधिकृत डॉक्टर इस तरह की दलील देने लग जाए तो क्या आपके और हमारे जैसे लोग। दुकानदारी या प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग। इंजीनियर और चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसे प्रोफेशनल्स। इस दलील का सामना कर पाएंगे। यह सेवा में कमी नहीं बल्कि उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी का मामला है। क्या ऐसी इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। क्या ऐसे डॉक्टर के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। यदि सजा नहीं दी गई तो यह हर क्लेम के साथ ऐसा ही करते रहेंगे। इंश्योरेंस पॉलिसी लेने वाला हर कोई तो डॉक्टर नहीं होता। वह बेचारा कैसे लड़ेगा। और क्या लड़ने के लिए इंश्योरेंस पॉलिसी ली जाती है।
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