Tribal Welfare Department, Madhya Pradesh Government के असिस्टेंट कमिश्नर संदीप जैन को रिश्वतखोरी के एक मामले में स्पेशल कोर्ट सागर द्वारा भ्रष्टाचार का दोषी घोषित किया गया है। इसके साथ ही उन्हें 3 साल जेल की सजा और आईपीसी की धारा 384 के तहत 2 साल जेल की सजा से दंडित किया गया है।
छात्रावास के कर्मचारी वीर सिंह अहिरवार की शिकायत पर लोकायुक्त पुलिस की कार्रवाई
दिनांक 27 दिसंबर 2018 को पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त कार्यालय सागर में वीर सिंह अहिरवार द्वारा एक शिकायत प्रस्तुत की गई थी। इसमें बताया गया था कि वह, शासकीय आदिवासी सीनियर बालक छात्रावास केसली जिला सागर में पदस्थ है। जनजातीय कार्य विभाग सागर के सहायक आयुक्त संदीप जैन द्वारा ₹5000 मासिक रिश्वत की मांग की जा रही है। रिश्वत नहीं देने पर, उसे अनुपस्थित बताकर नोटिस जारी कर दिया है। शिकायत का सत्यापन करवाने, एवं ऑडियो एविडेंस कलेक्ट करने के बाद पुलिस अधीक्षक लोकायुक्त पुलिस सागर द्वारा इंस्पेक्टर संतोष जामरा के नेतृत्व में ट्रैप दल का गठन किया गया। प्लानिंग के तहत शिकायत करने वाले कर्मचारियों को केमिकल युक्त ₹5000 के नोट दिए गए। जैसे ही वीर सिंह ने संदीप जैन को रिश्वत की राशि प्रदान की, मौके पर सिविल ड्रेस में मौजूद लोकायुक्त पुलिस की टीम ने संदीप जैन को पकड़ लिया। केमिकल टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं भा.द.वि. की धारा-384 के तहत मामला दर्ज करके संदीप जैन को गिरफ्तार कर लिया गया।
जनजातीय कार्य विभाग सागर के सहायक आयुक्त संदीप जैन भ्रष्टाचार के दोषी घोषित
मामला दर्ज करने के बाद लोकायुक्त पुलिस की जांच में संदीप जैन को दोषी पाया गया। सभी डाक्यूमेंट्स और सबूत के साथ मामला सजा के निर्धारण के लिए, विशेष न्यायाधीश भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के समक्ष प्रस्तुत किया गया। स्पेशल कोर्ट द्वारा एक बार फिर संदीप जैन को अपना पक्ष प्रस्तुत करने का अवसर दिया गया परंतु संदीप जैन कोर्ट के समक्ष अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए, जबकि लोकायुक्त पुलिस ने प्रमाणित कर दिया कि संदीप जैन एक रिश्वतखोर अधिकारी है।
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 के तहत सजा
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज होने वाले मामलों की सुनवाई के लिए नियुक्त किए गए विशेष न्यायाधीश श्री आलोक मिश्रा ने संदीप जैन को भ्रष्टाचार का दूसरी घोषित करते हुए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 के अंतर्गत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं धारा-16 के अंतर्गत 20,000/-(बीस हजार रूपये) रूपये अर्थदण्ड तथा भारतीय दंड विधान की धारा-384 के अंतर्गत 02 वर्ष का सश्रम कारावास एवं पॉच हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया। मामले की पैरवी प्रभारी उप-संचालक (अभियोजन) श्री धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में श्री लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी सहा. जिला अभियोजन अधिकारी ने की।
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