ईसाई पुरुष द्वारा धर्म परिवर्तन करके दूसरी शादी करना अपराध होगा या नहीं जानिए - legal advice

हिन्दू धर्म की भाँति ईसाई धर्म के अंतर्गत भी धर्म त्याग देने मात्र से व्यक्ति आपने वैवाहिक बंधनों से मुक्ति नहीं पा सकता है। अतः वैध विवाह के अस्तित्व में रहते यही कोई ईसाई किसी अन्य धर्म को स्वीकार करके विवाह करता है तो वह पुनः विवाह के अपराध का दोषी माना जाएगा। वैवाहिक बंधन को सबसे पहले उसे तलाक द्वारा समाप्त करना होगा। 

हिंदू या क्रिश्चियन महिला, क्या अपना धर्म बदलकर करके दूसरी शादी कर सकती है

कोई ईसाई स्त्री आपने पति को तलाक दिए बिना आपने जीवन काल में दूसरा विवाह नहीं कर सकती है भले ही उसने ईसाई धर्म को त्याग कर दूसरा धर्म ही क्यों नहीं स्वीकार लिया हो। मिलार्ड (1887), (मद्रास 218) के मामले मे हिन्दू विवाहिता पत्नी ने हिन्दू धर्म त्याग कर इसाई धर्म स्वीकार किया और मिलार्ड नामक इसाई से विवाह किया, इस मामले में महिला को न्यायालय ने IPC की धारा 494 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया। 

जानिए धर्म परिवर्तन संबधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी

" यदि कोई हिन्दू पुरुष अपना धर्म त्यागकर ईसाई धर्म स्वीकार करके ईसाई रीति के अनुसार ईसाई स्त्री से विवाह करता है और इसके पाश्चात् वह ईसाई धर्म त्यागकर इस्लाम धर्म स्वीकार करके इस्लामिक रीति के अनुसार किसी मुस्लिम महिला से विवाह कर लेता है, जबकि उसकी ईसाई पत्नी जीवित थी इस स्थिति में वह पुरुष द्वि विवाह के अपराध का दोषी होगा।

इसी प्रकार यदि कोई ईसाई महिला किसी ईसाई पुरुष से ईसाई रीति के अनुसार विवाह करती है और अपने पति के जीवित रहते, इस्लाम धर्म स्वीकार करके किसी मुस्लिम पुरुष से मुस्लिम रीति से विवाह कर लेती है तो वह भी द्वि विवाह के अपराध IPC की धारा 494 एवं BNS की धारा 81 के अंतर्गत दोषी होगी। 

क्या है क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 के विवाह विघटन के आधार जानिए

भारत में ईसाई विवाह 1869 के भारतीय तलाक अधिनियम की धारा 10 के अंतर्गत तीन शर्तों के तहत विवाह भंग किया जा सकता है-
धारा 10A (2001 में संशोधित) के द्वारा दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं।
धारा 10 (I) के अनुसार या तो कोई पक्षकार इस आधार पर तलाक के लिए दायर कर सकती है कि दूसरा पक्षकार मानसिक विकार है। इन आधारों के लिए दो शर्तों की आवश्यकता होती है
1. पक्षकार को 'असाध्य' के रूप में चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित होना चाहिए।
2.संबंधित चिकित्सा लक्षणों को तलाक के लिए दाखिल करने से कम से कम दो साल पहले नोट किया जाना चाहिए। यदि लक्षणों का इलाज किसी भी समय किया गया था, लेकिन अंततः लाइलाज हो गया, तो दो साल की अवधि को उस तारीख से गिना जाएगा जब बीमारी को लाइलाज प्रमाणित किया गया था।

महिलाएं तीन विशेष आधारों पर धारा 10 (II) के तहत तलाक का अनुरोध कर सकती। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।

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