प्रारम्भ से भारतीय कानून में दहेज हत्या या दहेज क्रूरता का अपराध नहीं था, क्योंकि पूर्व काल में दहेज लेना-देना, महिला पर पति या सास, ससुर द्वारा क्रूरता करना अपराध नहीं माना जाता था। धीरे-धीरे महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ एवं भारतीय संविधान में महिलाओं को समानता का दर्जा दिया गया तब से महिलाओं के लिए कानून बनाए गए।
जानिए दहेज हत्या एवं दहेज क्रूरता कानून कब और क्यों जोड़े गए:-
वर्ष 1961 में दहेज प्रतिषेध अधिनियम पारित किया गया, जिसका उद्देश्य दहेज लेने या दहेज देने वाले व्यक्ति को दण्डित करना था लेकिन इससे भी महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हुआ। वर्ष 1986 में भारतीय दण्ड विधान में संशोधन कर एक नई धारा 304ख दहेज हत्या अपराध, जोड़ा गया। जिसके अंतर्गत अगर कोई महिला की मृत्यु शादी के सात साल के भीतर सुसराल में अप्राकृतिक कारणों से होती है, तब पति या नाते-रिश्तेदारों पर अपराध की उपधारणा कर दण्डित किया जा सकता है एवं इसी अपराध के साक्ष्य के लिए साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 113ख जोड़ी गई।
दुर्भाग्य ये रहा है कि महिलाओं पर पति या उनके नातेदारों द्वारा अत्याचार कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसलिए भारतीय विधि में संशोधन कर वर्ष 1983 के एक और नई धारा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 में जोड़ी गई। धारा 498क के अन्तर्गत कोई व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ क्रूरता करेगा उसे दण्डित किया जाएगा।
इन सब संशोधन के बावजूद दहेज समस्या आज भी एक सामाजिक अभिशाप के रूप मे यथावत बनी हुई है जो एक चिंता का विषय है।
राम बदन वर्मा बनाम बिहार राज्य मामला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां नवविवाहित महिला की मृत्यु न तो प्रकृतिक हुई हो और न ही अपघात के कारण तब यह निष्कर्ष निकाला जाना सही है कि महिला की मृत्यु अप्राकृतिक मृत्यु का मामला है, ऐसे में आरोपी को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 304ख के अंतर्गत दोषसिद्ध किया जाना एवं दहेज मृत्यु का अपराध माना जाना न्यायोचित होगा। लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद)। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
डिस्क्लेमर - यह जानकारी केवल शिक्षा और जागरूकता के लिए है। कृपया किसी भी प्रकार की कानूनी कार्रवाई से पहले बार एसोसिएशन द्वारा अधिकृत अधिवक्ता से संपर्क करें।
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