MP NEWS - दिग्विजय सिंह, सिंधिया का सामना करने को तैयार नहीं, यादव को आगे बढ़ाया

Bhopal Samachar
मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार मौका आया है जब दिग्विजय सिंह और सिंधिया परिवार का सीधा मुकाबला हो सकता है। हर कोई देखना चाहता है कि ग्वालियर चंबल संभाग में श्री दिग्विजय सिंह और श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया में से कौन अधिक लोकप्रिय है और किसे चुनाव लड़ना और जीतना आता है, लेकिन लगता है कि श्री दिग्विजय सिंह, सिंधिया का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। इसलिए कांग्रेस पार्टी की पिछली मीटिंग में श्री अरुण यादव ने गुना शिवपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की इच्छा जताई है। 

दिग्विजय सिंह पीछे हटे तो दाग लग जाएगा

गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट पर आम जनता, मीडिया, पॉलीटिकल एनालिस्ट और राजनीति से जुड़े हुए सभी लोग फिर चाहे वह भाजपा में हो या कांग्रेस में, श्री दिग्विजय सिंह और श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच मुकाबला देखना चाहते हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम घोषित हो चुका है। श्री दिग्विजय सिंह इस मामले में भिन्न प्रकार के बयान दे रहे हैं। सबसे पहले उन्होंने राजगढ़ में कहा कि मेरा राज्यसभा का कार्यकाल बाकी है। इसलिए मैं लोकसभा नहीं लडूंगा। फिर कहा कि पार्टी जो कहेगी वह करूंगा। अब जब फाइनल राउंड आ गया है, तो अरुण यादव का हाथ खड़ा करवा दिया। सब जानते हैं कि, मध्य प्रदेश की पूरी 29 सीटों पर लोकसभा के प्रत्याशियों का निर्धारण श्री दिग्विजय सिंह ही करेंगे। छिंदवाड़ा में श्री नकुलनाथ का टिकट भी श्री दिग्विजय सिंह की NOC पर निर्भर करता है। ऐसी स्थिति में यदि श्री दिग्विजय सिंह गुना शिवपुरी लोकसभा सीट से, श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का सामना करने से पीछे हटे तो उनकी राघोगढ़ के राजा वाली प्रतिष्ठा पर गहरा दाग लग जाएगा। 

अरुण यादव क्या खुद को अटल बिहारी समझते हैं

मध्य प्रदेश की कांग्रेस पार्टी में श्री अरुण यादव भी अपनी ही तरह के नेता हैं। किसी जमाने में सफलता के शिखर पर थे परंतु संभल नहीं पाए। कमलनाथ ने टांग पड़कर खींची तो भोपाल से फिसल कर सीधे खंडवा में जाकर गिरे। पिछला लोकसभा चुनाव लड़ा था। नतीजा क्या हुआ सब जानते हैं। निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर दर्ज है। उसके बाद से अरुण यादव थोड़े बदले बदले से नजर आ रहे हैं। कभी बुधनी से विधानसभा चुनाव लड़ने की बात करते हैं। कभी गुना शिवपुरी से सिंधिया के खिलाफ टिकट मांगने लगते हैं। समझ नहीं आता कि क्या श्री अरुण यादव अब तक आत्ममुग्धता से बाहर नहीं आए हैं। खुद को अटल बिहारी वाजपेई समझते हैं। 

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