HINDI NEWS - भारत के छोटे कर्मचारियों के लिए बड़ी खबर, न्यूनतम वेतन मजदूरी की दर बदलेगी

भारत में 50 करोड़ से ज्यादा संख्या में मौजूद छोटे कर्मचारी एवं मजदूरों के लिए गुड न्यूज़ है। उनकी न्यूनतम वेतन अथवा मजदूरी की दर में परिवर्तन होने जा रहा है। दरअसल, भारत सरकार न्यूनतम वेतन निर्धारण का पूरा फार्मूला ही बदलने जा रही है। स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक मिनिमम वेज सिस्टम लागू था परंतु अब लिविंग वेज सिस्टम लागू होने जा रहा है। कृपया ध्यान से पढ़िए इस परिवर्तन से भारत के छोटे कर्मचारी एवं असंगठित मजदूरों को क्या लाभ होगा। 

भारत में 50 करोड़ से ज्यादा मजदूर और कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता

हाल ही में इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाईजेशन (ILO) ने भी लिविंग वेज सिस्टम की वकालत की थी। आईएलओ ने इस संबंध में जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए थे। ILO के अनुसार लिविंग वेज के जरिए इस सिस्टम को और स्पष्ट किया जाए। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मिनिमम वेज सिस्टम को लिविंग वेज सिस्टम में बदलने की प्रक्रिया 2025 में करने वाला है। वर्तमान में करीब 50 करोड़ मजदूर देश में काम करते हैं। इनमें से 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। इनमें से अधिकतर को मिनिमम वेज नहीं मिल पाते। इसके अलावा सरकारों के लिए काम करने वाली आउटसोर्स कंपनियों के कर्मचारी, छोटी कंपनियों में, छोटे व्यापारियों के प्रतिष्ठानों में, गांव शहर की दुकानों में काम करने वाले कर्मचारियों का आंकड़ा तो सरकार के पास भी नहीं है क्योंकि इनका कभी कोई रजिस्ट्रेशन ही नहीं करवाया गया।

मिनिमम वेज सिस्टम क्या है 

भारत में फिलहाल मिनिमम वेज सिस्टम लागू है। इसके तहत प्रति घंटे की वेतन अथवा मजदूरी की गणना की जाती है। इसमें मनुष्य की न्यूनतम आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान के आधार पर न्यूनतम वेतन अथवा मजदूरी का निर्धारण किया जाता है। भारत में विभिन्न राज्यों में यह राशि प्रति घंटा के हिसाब से अलग-अलग तय की गई है। किसी भी कर्मचारी को इससे कम पैसा नहीं दिया जा सकता। महाराष्ट्र में यह राशि 62.87 रुपये और बिहार में 49.37 रुपये प्रति घंटा है। अमेरिका में यही रकम 7.25 डॉलर (605.26 रुपये) है। भारत में असंगठित सेक्टर में काम करने वालों को मिनिमम वेज भी बहुत मुश्किल से मिल पाते हैं। सरकार भी इन सेक्टर में बहुत कार्रवाई नहीं कर पाती है।

लिविंग वेज सिस्टम क्या है

लिविंग वेज सिस्टम को आसान शब्दों में समझे तो इसमें रोटी, कपड़ा और मकान से एक कदम आगे जाकर सोचा जाता है। लिविंग वेज में वर्कर के सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक कई जरूरी चीजों के बारे में भी ध्यान दिया जाता है। इस सिस्टम में ध्यान दिया जाता है कि वर्कर और उसके परिवार को सामाजिक सुरक्षा के साधन भी मिलें। लिविंग वेज सिस्टम में लेबर को मूलभूत जरूरतों से ऊपर जाकर घर, भोजन, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और कपड़े जैसी कई जरूरतें शामिल होती हैं।

भारत में लिविंग वेज सिस्टम लागू करने से क्या होगा

अगर सरकार नई व्यवस्था लाती है, तो किसी व्यक्ति के लिए मेहनताने का आधार रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरतों पर होने वाले खर्च को बनाया जाएगा। हर सेक्टर में काम करने वाले लोगों के लिए वहां आने वाले खर्च के हिसाब से मेहनताना तय होगा। मौजूदा व्यवस्था में लेबर प्रोडक्टिविटी और स्किल को आधार बनाया जाता है। अभी देश में 176 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी, मिनिमम वेज होती है। साल 2017 से इसमें कोई बदलाव भी नहीं हुआ है। ये देश में वेल्थ डिस्ट्रिब्यूशन को भी सही तरीके से नहीं करती है। 

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