BNS, IPC - कानून में प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार क्यूँ बनाया गया है, जानिए सरल भाषा में

Legal general knowledge and law study notes

भारतीय दण्ड संहिता में धारा 96 से 106 एवं भारतीय न्याय संहिता, 2023 ने धारा 34 से 44 में व्यक्तियों को प्राइवेट प्रतिरक्षा के कानूनी अधिकार दिए गए हैं। विधि द्वारा व्यक्ति को निजी प्रतिरक्षा का अधिकार दिए जाने का एक अन्य कारण यह भी है कि व्यावहारिक दृष्टि से राज्य के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह अपने सीमित साधनों से प्रत्येक व्यक्ति की प्रत्येक क्षति से रक्षा कर सके, इसीलिए व्यक्ति को एक निश्चित सीमा तक स्वयं के शरीर व संपत्ति की स्वयं रक्षा करने का अधिकार देती है, लेकिन यह अपेक्षा करती हैं कि निजी प्रतिरक्षा के लिए किया गया बल प्रयोग उस सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए जो उन परिस्थितियों में एक सामान्य व्यक्ति को ठीक समझे।

इसी सन्दर्भ में महत्वपूर्ण निर्णय जानिए:-

1. टामस बनाम मध्यप्रदेश राज्य के मामले मे यह अभिनिर्धारित किया कि प्राइवेट प्रतिरक्षा का अधिकार केवल तब ही उत्पन्न होता है जब व्यक्ति के सामने दो विकल्प रह गए हों या तो वह आक्रमणकारियों के समक्ष समर्पण कर दे या उस परिस्थिति में बचाव के लिए आवश्यक बल का प्रयोग करते हुए स्वयं का बचाव करे।

2. चाको मथाई बनाम केरल राज्य मामले मे केरल उच्च न्यायालय ने कहा कि विधि विरुद्ध आक्रमणों से अपनी रक्षा स्वयं करने की दशा में प्राइवेट प्रतिरक्षा का बचाव एक बहुमूल्य उपहार के समान है। विधि किसी व्यक्ति से यह अपेक्षा नहीं करती कि उस पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आक्रमण किए जाने की दशा में वह कायरता से उसे सहन कर ले तथा अपनी संपत्ति को छोड़कर भाग खड़ा हो, ऐसी स्थिति में उससे यह अपेक्षित है कि वह उचित बल प्रयोग करते हुए आक्रमणकारी का मुकाबला करे और अपने शरीर व संपत्ति की स्वयं रक्षा करे। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) 

:- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665 , इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com

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