मध्य प्रदेश में लोकायुक्त पुलिस कई बार कानून की अपने तरीके से समीक्षा करती है। इसके कारण उसकी ईमानदारी और निष्पक्षता पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है। आज शिवपुरी जिले के बैराड़ सरकारी अस्पताल में लोकायुक्त पुलिस ग्वालियर की टीम द्वारा की गई कार्रवाई, कुछ इसी प्रकार का उदाहरण है। डॉक्टर ने रिश्वत मांगी थी। शिकायत भी डॉक्टर की हुई थी। शिकायत का सत्यापन भी किया गया था, लेकिन छापामार कार्रवाई में कंपाउंड को गिरफ्तार कर लिया। जांच के नाम पर डॉक्टर को राहत दे दी गई।
सबसे पहले पढ़िए मामला क्या है
लोकायुक्त ग्वालियर के डीएसपी श्री विनोद कुशवाहा ने बताया कि सोनू जाटव निवासी ग्राम टोरिया ने, लोकायुक्त पुलिस एसपी के समक्ष उपस्थित होकर बताया कि उसका एक्सीडेंट हो गया था। इसके लिए डॉक्टर नवोदित अवस्थी से एमएलसी करवानी थी। उन्होंने इसके लिए ₹3000 रिश्वत की मांग की। लोकायुक्त पुलिस ने शिकायत का सत्यापन किया और नियमानुसार शिकायतकर्ता सोनू जाटव एवं डॉक्टर नवोदित अवस्थी की बातचीत रिकॉर्ड की। शिकायत का सत्यापन हो जाने के बाद ट्रैप दल का गठन किया गया। प्लानिंग के अनुसार शिकायतकर्ता को केमिकलयुक्त नोट देकर रिश्वत की रकम अदा करने के लिए भेजा गया। यहां डॉक्टर ने अपने कंपाउंड श्री रघुराज धाकड़ को रिश्वत की राशि प्राप्त करने के निर्देश दिए। जैसे ही रिश्वत की रकम का आदान-प्रदान हुआ, मौके पर सिविल ड्रेस में मौजूद लोकायुक्त पुलिस की टीम ने कंपाउंड श्री रघुराज धाकड़ गुरु गिरफ्तार कर लिया।
शिकायत डॉक्टर की हुई थी तो फिर कंपाउंड को क्यों पकड़ा
रिश्वत की रकम प्राप्त करने के कारण, श्री रघुराज धाकड़ कंपाउंड का केमिकल टेस्ट पॉजीटिव पाया गया। इसलिए नियमानुसार उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया और गिरफ्तारी हुई। न्यायालय में ट्रायल के दौरान लोकायुक्त पुलिस को यह साबित करना पड़ेगा कि, कंपाउंड श्री रघुराज धाकड़ यह जानते थे कि वह रिश्वत की रकम प्राप्त कर रहे हैं। इस प्रकार के मामलों में लोकायुक्त पुलिस द्वारा रिश्वत मांगने वाले अधिकारी और रिश्वत प्राप्त करने वाले अधीनस्थ कर्मचारी, दोनों के खिलाफ मामला दर्ज करती है, परंतु शिवपुरी में सुबह से शाम तक हाई प्रोफाइल ड्रामा चलता रहा और शाम को लोकायुक्त पुलिस ने डॉक्टर का वॉयस सैंपल कलेक्ट करने की कार्रवाई की।
पूछने पर बताया कि, वॉयस सैंपल की जांच करवाई जाएगी। यदि डॉक्टर द्वारा रिश्वत मांगना पाया गया तो उनके खिलाफ प्रकरण दर्ज किया जाएगा। यहां सिर्फ एक प्रश्न है कि यही फार्मूला पूरे मध्य प्रदेश में लागू क्यों नहीं होता। वैसे भी मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत औपचारिक गिरफ्तारी होती है। फिर मामला दर्ज करने में परेशानी क्या थी। जबकि यह अपने आप में स्पष्ट है कि एमएलसी डॉक्टर द्वारा की जाती है। कंपाउंड केवल डॉक्टर के निर्देशों का पालन करता है।
लोकायुक्त की ईमानदारी कैसे प्रमाणित होगी
भोपाल में चाय वाले ने रिश्वत ली थी, लोकायुक्त पुलिस ने उसके साथ टीआई को भी आरोपी बनाया था। जबकि चाय वाला, पुलिस इंस्पेक्टर का अधीनस्थ कर्मचारी नहीं है। इस मामले में तो डॉक्टर के अधीनस्थ कर्मचारी द्वारा रिश्वत की राशि प्राप्त की गई है। मजबूत ग्राउंड होने के बाद भी डॉक्टर को क्यों छोड़ दिया गया। इस मामले में लोकायुक्त की टीम ने ईमानदारी से काम किया है या नहीं। इस प्रश्न का उत्तर कहां से मिलेगा।
पिछले 24 घंटे में सबसे ज्यादा पढ़े जा रहे समाचार पढ़ने के लिए कृपया यहां क्लिक कीजिए। ✔ इसी प्रकार की जानकारियों और समाचार के लिए कृपया यहां क्लिक करके हमें गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें। ✔ यहां क्लिक करके भोपाल समाचार का व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करें। ✔ यहां क्लिक करके भोपाल समाचार का टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करें। क्योंकि भोपाल समाचार के टेलीग्राम चैनल - व्हाट्सएप ग्रुप पर कुछ स्पेशल भी होता है।