सनातन भारतीय संस्कृति में 108 अंक का बड़ा महत्व है। पूजा में उपयोग की जाने वाली माला के मनके 108 होते हैं। 108 परिक्रमा, 108 वस्तुओं का दान, हवन में 108 आहुतियां और इसी प्रकार के वह सभी कार्य जिसमें संख्या का उपयोग होता है, वह संख्या अक्सर 108 होती है, लेकिन भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग लगाए जाते हैं। सवाल यह है कि 56 ही क्यों, 108 क्यों नहीं। आइए समझने का प्रयास करते हैं:-
पृथ्वी पर सबसे पहले छप्पन भोग किसने बनाए
भगवान श्री कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को उठाया तो 7 दिन तक सभी लोग उनकी शरण में रहे। 8वें दिन जब मौसम साफ हुआ और सब बाहर आए तो माता यशोदा ने सभी के लिए सातों दिन की तृप्ति के लिए विशेष भोजन बनाया। प्रत्येक दिन के लिए 8 व्यंजन, इस प्रकार कुल छप्पन भोग बनाए गए।
भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग की दूसरी कथा
एक अन्य कथा है कि माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण को आठों प्रहर अलग-अलग विशेषता वाला भोजन कराती थीं। इस प्रकार 7 दिन X 8 प्रहर= 56 प्रकार का भोजन बनाकर भगवान को अर्पित किया जाता है। सभी महिलाएं भगवान श्री कृष्ण के लिए छप्पन भोग बनाने लगीं। मान्यता है कि जब घर की महिलाएं भगवान श्री कृष्ण के लिए छप्पन भोग बनाती हैं तो रूप बदलकर स्वयं भगवान श्री कृष्ण उसे ग्रहण करने के लिए आते हैं।
भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग की तीसरी कथा
तीसरी कथा के अनुसार भगवान कृष्ण गोलोक में राधाजी के साथ अष्टदल कमल पर बैठते थे। कमल की तीन परतें थीं। प्रथम परत में आठ पँखुड़ियां थीं। प्रत्येक पँखुड़ी पर एक-एक सखी बैठती थीं। द्वितीय परत पर सोलह पंखुड़ियाँ थी। उन पर सोलह सखियाँ बैठती थीं। तृतीय परत पर बत्तीस पँखुड़ियों पर बत्तीस सखियाँ बैठी थीं। इस प्रकार कुल 08+16+32=56 सखियों के सम्मान में छप्पन भोग लगाने की परम्परा का निर्वहन होता है। इस भोजन से सभी सखियाँ तृप्त हो जाती थीं।
भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग की चौथी कथा
चौथी कथा के अनुसार श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए 56 गोपियों ने यमुना नदी में एक माह तक ब्रह्म मुहूर्त में स्नान किया तथा माँ कात्यायिनी का पूजन अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए किया। श्रीकृष्ण ने उन्हें इस मनोरथ पूर्ति का आशीर्वाद भी दे दिया। तपस्या पूर्ण होने पर सभी ने भगवान श्री कृष्ण के भोग के लिए अलग-अलग व्यंजन बनाए। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण को 56 व्यंजनों का भोग लगाया गया। तभी से सभी कन्याएं भगवान श्री कृष्ण जैसा वर प्राप्त करने के लिए श्री कृष्ण को 56 भोग अर्पित करती हैं।
56 भोग का वैज्ञानिक महत्व
56 भोग सुपाच्य, शक्तिवर्धक तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला होता है क्योंकि इसमें षड़रस (1. मधुर, 2. अम्ल, 3. लवण, 4. कटु, 5. तिक्त और 6. कषाय) होता है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज लवण इत्यादि सभी महत्वपूर्ण तत्व पाए जाते हैं।