प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सागर की सभा में लाखा बंजारे का जिक्र किया। कहा कि लोग उनके योगदान को भूल गए। इसके बाद सागर के विद्वान और विशेषज्ञ लाखा बंजारे के बारे में पता करने जुट गए। कुछ लोग इतिहास की किताबें खंगाल रहे हैं और कुछ लोग किंवदंतियों के पीछे भाग रहे हैं। लेकिन अपन जानते हैं कि ना तो इतिहास की किताब में सही उल्लेख होता है और ना ही किंवदंतियों में। मैं बताता हूं, बुंदेलखंड के बुजुर्गों द्वारा सुनाई गई कथाओं और उस कालखंड की घटनाओं एवं संभावनाओं पर आधारित सागर के लाखा बंजारा की सच्ची कहानी।
राजा को साधु ने बताया था सागर का पता
बात 16वीं शताब्दी की है। आज हरा भरा दिखाई देने वाला सागर शहर उन दिनों बंजर जमीन हुआ करता था। नजदीक में गढ़पेहरा राज्य था। इसके राजा का नाम उदयन शाह था। वहां भी जल संकट छाया हुआ था। अकाल के कारण पशुधन नष्ट हो रहा था। वनस्पति सूखती जा रही थी। मनुष्य का जीवन संकट में था। किसी विशेषज्ञ ने राजा को सुझाव दिया कि, गढ़पेहरा से दूर उस बंजर जमीन (जहां आज सागर की झील मौजूद है) पर तालाब का निर्माण करें। वहां जमीन के नीचे मनुष्यों के उपयोग के लिए बहुत बड़ा जल भंडार है।
400 एकड़ में खुदाई के बाद भी पानी की बूंद नहीं निकली
विशेषज्ञ साधु के परामर्श पर राजा ने बताए स्थान पर तालाब के निर्माण का निर्णय लिया। सैकड़ों मजदूर बुलाए गए और हजारों नागरिकों ने श्रमदान शुरू किया। तालाब तैयार हो गया परंतु सिद्ध साधु के बताए स्थान पर जलधारा प्रकट नहीं हुई। विचार आया कि स्थान को चिन्हित करने में कोई गलती हुई होगी इसलिए उसके नजदीक फिर से तालाब खोदा गया। यहां भी जलधारा नहीं मिली तो उसके नजदीक खुदाई की गई इस प्रकार 400 एकड़ जमीन की खुदाई कर दी गई लेकिन जलधारा प्रकट नहीं हुई।
लाखा बंजारा- भगवान शिव के केश-तृणम्
बढ़ता हुआ जल संकट और लगातार मिलती विफलता के कारण राजा डिप्रेशन की स्थिति में चला गया। प्रजा में भी मायूसी छा गई। लोग इस स्थान को छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर पलायन करने की तैयारी करने लगे। इसी दौरान लाखा बंजारा अपने एक लाख पशु और उनके साथ हजारों पशुपालकों के दल का नेतृत्व करते हुए इस स्थान पर पहुंचा। पलायन के लिए उत्सुक लोगों ने लाखा बंजारा से किसी ऐसे स्थान के बारे में जानने का प्रयास किया जहां पर्याप्त जल भंडार हो। इस दौरान लाखा बंजारा को समस्या का पता चला।
कहते हैं कि लाखा बंजारा कोई पशुपालक नहीं बल्कि भगवान शिव की जटाओं का एक अंश था। जिसमें माता गंगा का वास था। उसने अपने परिवार और साथियों के साथ जाकर देखा। 400 एकड़ की झील खुदी पड़ी थी परंतु पानी की एक बूंद नहीं थी। अनुसंधान के बाद उसने बताया कि, यदि कोई ऐसा दंपति जिसमें पुरुष ने एक पत्नी व्रत धारण किया हो और महिला पतिव्रता हो, इस विशेष स्थान पर अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए खुदाई करेंगे तो गंगा प्रकट होगी, परंतु गंगा का प्रवाह इतना तेज होगा कि उनका जीवित रहना असंभव हो जाएगा।
जब पूरे राज्य में ऐसा कोई दंपति नहीं मिला तब लाखा बंजारा के पुत्र और पुत्रवधू ने औजार उठाए एवं अपने पिता लाखा बंजारा के बताए स्थान पर हर हर महादेव का उद्घोष करते हुए खुदाई प्रारंभ कर दी। कुछ ही समय बाद लाखा बंजारा की भविष्यवाणी के अनुरूप तीव्र और भव्य जलधारा प्रकट हुई और देखते ही देखते लाखा बंजारा का पुत्र और पुत्रवधू ने उसी जल में समाधि ले ली। ✒ उपदेश अवस्थी (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)