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भारत में सन 1997 से पहले जब अधिकारी किसी महिला कर्मचारी को अपने केबिन में बुलाता था तो अक्सर वह सहम जाती थी लेकिन विशाखा मामले के बाद अधिकारी, किसी भी महिला कर्मचारी को अकेले अपने केबिन में बुलाने से पहले डरता है। दरवाजा खुला रहने देता है। विशाखा मामले ने कार्यस्थल पर महिलाओं को संरक्षित और शक्तिशाली बना दिया है। पढ़िए कौन है विशाखा, उसकी कहानी क्या है। और 1997 में ऐसा क्या हुआ जो आज तक सुर्खियों में बना हुआ है।
बहुचर्चित विशाखा मामले की कहानी
राजस्थान में जयपुर के पास भातेरी गांव में रहने वाली सोशल वर्कर भंवरी देवी राज्य सरकार की महिला विकास कार्यक्रम के तहत सामाजिक कार्यकर्ता का काम करती थीं। एक बाल-विवाह को रोकने की कोशिश के दौरान उनकी बड़ी जाति के कुछ लोगों से दुश्मनी हो गई। जिसके बाद बड़ी जाति के कुछ लोगों ने उनके साथ गैंगरेप किया। इसमें कुछ ऐसे व्यक्ति भी थे जो बड़े पदों पर थे। न्याय पाने के लिए भंवरी देवी ने इन लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कराया लेकिन सेशन न्यायालय द्वारा उन्हें बरी कर दिया क्योंकि ग्राम पंचायत से लेकर पुलिस, डॉक्टर सभी ने भंवरी देवी की बात को सिरे से ही ख़ारिज कर दिया।
विशाखा कौन थी जिसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई
भंवरी देवी के खिलाफ हुए इस अन्याय ने बहुत सी महिला समूह ओर गैर सरकारी संस्थाओं को आगे आने के लिए विवश कर दिया एवं कुछ गैर सरकारी संस्थाओं (NGO) ने मिलकर वर्ष 1997 में 'विशाखा, नाम से एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई जिसे वर्तमान में ''विशाखा बनाम राजस्थान राज्य" से जाना जाता है।याचिका का प्रमुख उद्देश्य था, भंवरी देवी को इंसाफ दिलाना एवं कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन-उत्पीड़न के खिलाफ कार्यवाही की मांग करना।
विशाखा बनाम राजस्थान राज्य:- (सुप्रीम कोर्ट निर्णय)
उक्त मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, महिलाओं को कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है। इसने कर्मचारियों को उनका पालन करने और कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से बचने के लिए कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश भी दिए जानिए।
सुप्रीम कोर्ट ने दिशानिर्देश दिए कि किसी विशेष संस्थान, संगठन या कार्यालय का प्रभारी व्यक्ति, चाहे वह निजी हो या सार्वजनिक का हो, यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए जिम्मेदार होगा। यौन उत्पीड़न करने वाले आरोपी से जुर्माना वसूला जाएगा। कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए कार्रवाई करना एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय होगा एवं निजी कंपनियों के मामले में यौन उत्पीड़न की सजा से संबंधित सख्त नियम शामिल किए जाएंगे।
यदि यौन उत्पीड़न बाहरी लोगों द्वारा किया जाता है, तो उस संस्था के प्रभारी व्यक्ति को ऐसे अपराध के संचालन के लिए सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को " विशाखा गाइडलाइन" के नाम से जाना जाता है।
नोट :- निर्णय वर्ष 1997 से वर्ष 2013 तक सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन के अनुसार महिलाओं को संरक्षण प्राप्त होता है एवं वर्ष 2013 में भारत सरकार द्वारा इसी निर्णय के आधार पर "कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम पारित कर दिया गया। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
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