मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने मार्कफेड को RTI के दायरे में घोषित किया, सूचना आयोग की बड़ी जीत- MP NEWS

Right to Information- MP state Cooperative marketing federation limited 

हाईकोर्ट में 16 साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंततः मध्य प्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित - मार्कफेड को घुटने टेकने पड़े। हाईकोर्ट ने मार्कफेड को आरटीआई के दायरे में घोषित कर दिया है। यह मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग की बड़ी जीत है क्योंकि 16 साल पहले आयोग ने मार्कफेड को आरटीआई के दायरे में घोषित किया था परंतु मार्कफेड के अधिकारियों ने राज्य सूचना आयोग के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दे दी थी। 
 

सूचना आयोग के इस फ़ैसले से हुआ था नाराज़ मार्कफेड

राज्य सूचना आयोग ने 2006 में मार्कफेड को एक RTI अपील प्रकरण की सुनवाई करते हुए मार्कफेड को RTI एक्ट के अधीन बताते हुए जानकारी देने के आदेश जारी किए थे। सूचना आयोग का मानना था मार्कफेड शासन का अंग है और आरटीईआई एक्ट के तहत एक लोक प्राधिकारी की श्रेणी में है। आयोग ने मार्कफेड के बारे में यह भी कहा कि यह पूरी तरह से शासन के नियंत्रण में है और उसके कर्ता-धर्ता शासन के अधिकारी है। आयोग का यह भी कहना था कि मार्कफेड इसीलिए भी आरटीआई लागू होती है क्योंकि यह एक राज्य सरकार के कानून के तहत बनाई गई संस्था है। 

परंतु मार्कफेड चलाने वाले मध्य प्रदेश शासन के अधिकारियों का यह तर्क था कि मार्कफेड को कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 के तहत गठित किया गया है, इसलिए ये RTI से बाहर है। 

मजेदार बात यह है कि आरटीआई अधिनियम को जनता का अधिकार माना गया है और जनता के पैसे से ही मार्कफेड ने आरटीआई अधिनियम के विरोध में ही यह मुकदमा लड़ा।  

जस्टिस अग्रवाल ने पकड़ा मार्कफेड का झूठ

2007 से लेकर 2023 तक करीब 16 साल यह मुकदमा हाईकोर्ट जबलपुर में चला। आखिरकार जस्टिस विवेक अग्रवाल की बेंच ने इस पर अपना अंतिम फैसला सुना दिया। जस्टिस विवेक अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा की मार्कफेड की 98% शेयर होल्डिंग राज्य शासन के पास है, इससे स्पष्ट है कि यह पूरी तरह से शासन के नियंत्रण में है। मार्कफेड के बायलॉज जिक्र करते हुए जस्टिस विवेक अग्रवाल ने कहा बायोलॉजी से स्पष्ट है कि राज्य शासन ही मार्कफेड के मैनेजिंग डायरेक्टर और सेक्रेटरी की नियुक्ति करता है। 

हाईकोर्ट ने की मार्कफेड के काम की निंदा 

जस्टिस अग्रवाल ने यह भी कहा कि मार्कफेड संस्था पूरी तरह से शासन के स्वामित्व और नियंत्रण में है साथ ही शासन द्वारा वित्त पोषित भी है। ऐसी स्थिति में यह जानकर भी सूचना आयोग के निर्णय के विरोध में जाना मार्कफेड का एक मनमाना और गलत निर्णय था। जस्टिस अग्रवाल ने कहां कि मार्कफेड कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट की आड़ लेकर जनता को जानकारी देने से मना नहीं कर सकता है। 

जस्टिस विवेक अग्रवाल ने मार्कफेड की पिटिशन में कोई आधार ना होने पर उसे खारिज कर दिया साथ ही मार्कफेड को प्रतिवादीगण के वकील की फीस ₹10000 अदा करने के निर्देश भी दिए हैं। 

मार्कफेड से आरटीआई के तहत जानकारी मिलेगी

हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद अब आम जनता आरटीआई के तहत मार्कफेड की जानकारी ले सकेगी। आरटीईआई एक्ट सन 2005 में लागू हुआ था और अधिकारियों ने मार्कफेड को आरटीआई एक्ट से बाहर बता कर कुल 18 साल तक जानकारी नहीं दी थी। राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने हाईकोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि "हाईकोर्ट के निर्णय से साफ है मार्कफेड में आरटीआई का विरोध करना अधिकारियों का एक मनमाना और गलत निर्णय था। 

सभी अधिकारियों को मालूम था कि फेडरेशन पूरी तरह से शासन के अधीन है पर इसके बावजूद वे सूचना आयोग के निर्णय के विरुद्ध गए। ये सिर्फ़ अधिकारियों की ज़िद थी कि 18 साल तक आम आदमी को फेडरेशन की जानकारी आरटीआई के तहत नही लेंने दिया "  

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