रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपी कर्मचारी को नियमित पदोन्नति का अधिकार नहीं: हाई कोर्ट - news

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राजस्थान हाईकोर्ट ने गृह विभाग के एक कर्मचारी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी के आरोप कर्मचारियों को प्रमोशन दिए जाने से ईमानदार लोक सेवकों का मनोबल गिरता है। इनके कारण आम आदमी का शासन में विश्वास खत्म हो रहा है। इसलिए जांच खत्म होने तक इनके प्रमोशन पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस विनीत कुमार माथुर ने कहा कि, ऐसे व्यक्तियों पर कोई दया नहीं दिखाई जा सकती है जो गंभीर कदाचार में लिप्त हैं।

मदन लाल बनाम राजस्थान राज्य और अन्य एसबी सिविल WP-8952/2022 

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री सुशील सोलंकी हाई कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति गृह मामलों के विभाग में एलडीसी के पद पर हुई थी। उसके बाद दिनांक 30 जून 2015 को उसे यूडीसी के पद पर पदोन्नत किया गया। वर्ष 2020-21 में रिक्तियों के विरुद्ध सहायक प्रशासनिक अधिकारी के पद पर प्रोन्नति मिली। आदेश दिनांक 20 जुलाई 2020 को जारी हुआ जिसमें लिखा था कि याचिकाकर्ता की पदोन्नति दिनांक 1 नवंबर 2020 से प्रभावी होगी। 

पदोन्नति का आदेश जारी होने के बाद लेकिन पदोन्नति के प्रभावी होने से पहले दिनांक 6 अगस्त 2020 को भ्रष्ट आचरण के आरोप में उसके खिलाफ मामला दर्ज किया गया। गिरफ्तार किया गया एवं नियम अनुसार जमानत दे दी गई। इसके बाद डिपार्टमेंट ने याचिकाकर्ता को सस्पेंड कर दिया और उसके खिलाफ डिपार्टमेंटल इंक्वायरी शुरू कर दी गई। याचिकाकर्ता का कहना था कि अभी विभागीय जांच चल रही है। उसका दोष प्रमाणित नहीं हुआ है। इस दौरान जब वर्ष 2022-23 में विभागीय पदोन्नति की प्रक्रिया शुरू हुई तो याचिकाकर्ता को वरिष्ठता सूची में वरिष्ठ सहायक दर्ज किया गया है। 

याचिकाकर्ता का तर्क था कि पदोन्नति आदेश के अनुसार उसका प्रमोशन प्रभावी होना चाहिए। निलंबन और विभागीय जांच प्रक्रिया से प्रमोशन की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए। यह मनमाना और अन्याय पूर्ण है। 

जस्टिस विनीत कुमार माथुर ने कहा कि, याचिकाकर्ता की पदोन्नति प्रभावी होने से पहले ही उसके खिलाफ गंभीर कदाचार का आरोप लग गया और याचिकाकर्ता विभागीय जांच का सामना कर रहा है। अतः यह मान लेना कि जांच में निर्दोष पाए जाएगा और उसे प्रमोशन मिलना ही चाहिए, जल्दबाजी होगी। याचिका को खारिज करते हुए जस्टिस माथुर ने कहा कि, ऐसे व्यक्तियों पर कोई दया नहीं दिखाई जा सकती है जो गंभीर कदाचार में लिप्त हैं। आज सरकारी विभागों में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने के लिए उनसे सख्ती से निपटने की आवश्यकता है। 

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