दीनदयाल बिलगैंया- सागर में पत्रकारिता के विश्वविद्यालय का अंत, शोक की लहर- MP NEWS

मध्य प्रदेश के सागर संभाग में पत्रकारिता के विश्वविद्यालय श्री दीनदयाल बिलगैंया वैकुंठधाम को चले गए। 73 वर्ष की आयु में 50 वर्ष से अधिक की पत्रकारिता करने के बाद अपने पीछे भरा पूरा परिवार और पत्रकारों का कुटुंब छोड़ गए हैं। 

पत्रकार दीनदयाल बिलगैंया ने सागर की राजनीति को कभी दूषित नहीं होने दिया

श्री दीनदयाल बिलगैंया ने केवल समाचार संप्रेषित करने का काम नहीं किया बल्कि एक ऐसी पत्रकारिता की जिसने राजनीति को कभी पार तोड़कर सागर के बाहर नहीं निकलने दिया। यही कारण है कि चाहे पंडित गोपाल भार्गव हो या भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह राजपूत, प्रदीप लारिया या फिर शैलेंद्र जैन सभी ना केवल उन्हें दादा कहकर पुकारते थे बल्कि उनके साथ राजनीति के गंभीर विषयों पर समान विश्वास के साथ चर्चा किया करते थे। सभी लोग अक्सर दादा से यह जानने की कोशिश करते थे कि, सागर की जनता उनसे क्या चाहती है और क्या उनकी गतिविधियों से जनता में संतोष है। सबको विश्वास था कि श्री दीनदयाल बिलगैंया जो भी जानकारी देंगे वह 100% सही होगी। उनकी जीवन में कई बार ऐसे अवसर आए, जब उन्हें राजनीति में प्रमुख पदों पर आमंत्रित किया गया परंतु उन्होंने सदैव पत्रकारिता धर्म का पालन किया। 

दादा की टीम के लोग भी धुरंधर हैं

वैसे तो कई पत्रकार रिकॉर्ड बनाते हैं परंतु सागर के दीनदयाल बिलगैंया ने कभी किसी रिकॉर्ड के लिए पत्रकारिता नहीं की लेकिन पत्रकारिता का रिकॉर्ड कभी खराब ना हो इसकी चिंता हमेशा करते रहे। नवभारत के बाद पत्रकारिता का एक दौर खत्म हो गया था और जब राज एक्सप्रेस शुरू हुआ तो पत्रकारिता की परंपरा ही बदल चुकी थी लेकिन आंधियों में भी श्री दीनदयाल बिलगैंया ने पत्रकारिता की ज्वाला को बुझने नहीं दिया। सागर संभाग में उन्होंने इतने सारे लोगों को पत्रकारिता से जोड़ा और सिखाया कि आज उनकी टीम के कई लोग अपने अपने क्षेत्र के धुरंधर हैं। 

निश्चित रूप से यह उल्लेखनीय है कि कैबिनेट मंत्री पंडित गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह सहित मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वरिष्ठ पत्रकार श्री दीनदयाल बिलगैंया के निधन पर श्रद्धांजलि व्यक्त की है परंतु सबसे अधिक उल्लेखनीय है कि सागर संभाग में 100 से अधिक पत्रकारों के पास श्रद्धांजलि व्यक्त करने के लिए शब्द ही नहीं है। दादा पिछले 1 महीने से अस्वस्थ थे और पूरा जीवन उपलब्धियों से भरा है परंतु फिर भी कोई यह विश्वास नहीं कर पा रहा है कि दादा अब नहीं रहे।

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