Madhya Pradesh school education department news
कानून की खामियों का फायदा और पद का दुरुपयोग, इन दोनों को समझाने वाला उदाहरण सामने आया है। जिस अधिकारी को फरवरी में गड़बड़ी के चलते प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी के पद से सस्पेंड किया गया था। उसके खिलाफ मार्च में विभागीय जांच शुरू की गई और उसी अधिकारी को अप्रैल में फिर से प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी बना दिया गया। सनद रहे कि मध्यप्रदेश में आम बोलचाल की भाषा में इस प्रकार के लोगों को दोषी नहीं बल्कि दागी कहा जाता है और दागी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना गलत बात माना जाता है।
जीपी राठी विदिशा- फरवरी में सस्पेंड किया था
दिनांक 11 अप्रैल 2023 को लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा आदेश क्रमांक 352 जारी किया गया जिसमें लिखा है कि, श्री जी.पी. राठी (मूलपद प्राचार्य उमावि) प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी विदिशा को संचालनालय के आदेश क्र./स्था. 1/ सर्त / विदिशा / 2023 / 88 भोपाल दिनांक 27.2.2023 द्वारा निलंबित किया जा कर कार्यालय संभागीय संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संभाग भोपाल मुख्यालय नियत किया गया था।
जीपी राठी विदिशा- मार्च में विभागीय जांच शुरू हुई
श्री राठी द्वारा आयुक्त लोक शिक्षण को दिनांक 03.03.2023 को निलबंन से बहाल किये जाने का अभ्यावेदन प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत अभ्यावेदन पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए श्री जी.पी. राठी को निलंबन से बहाल करते हुए प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी विदिशा के पद पर पदस्थ किया जाता है।
जीपी राठी विदिशा- अप्रैल में फिर से पावर में
संचालनालय के पत्र क्रमांक 260-261 भोपाल दिनांक 15.03.2023 द्वारा श्री जी.पी.राठी को आरोप पत्रादि जारी कर प्रतिवाद चाहा गया। श्री राठी द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्रादि का प्रतिवाद समाधानकारक न होने के कारण प्रकरण में विभागीय जांच संस्थित की गई है। तदनुसार निलंबन अवधि का निराकरण विभागीय जांच के अंतिम निष्कर्ष पश्चात् किया जावेगा।
यह गलत है तो सही क्या होता है
श्री जीपी राठी ने आरोपपत्र के जवाब में जो प्रतिवाद प्रस्तुत किया वह संतोषजनक नहीं था और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई। ऐसी स्थिति में उन्हें कोई भी महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जाना चाहिए था। वैसे भी उनका मूल पद प्राचार्य उच्चतर माध्यमिक विद्यालय है। जिला शिक्षा अधिकारी पद के प्रभार का तो प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता था। यहां तक कि उन्हें हायर सेकेंडरी स्कूल का प्रिंसिपल भी नहीं बनाया जाना चाहिए। जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक उन्हें ऐसे काम में लगाना चाहिए था जहां पर वित्तीय व्यवहार नहीं होता और अधीनस्थ कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के अधिकार नहीं होते।
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