भारतीय दण्ड संहिता की धारा 322 में बताया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति पर बैल्ट,डंडे, चाकू, छड़ आदि से वार करता है और व्यक्ति को चोट आ जाए तो यह घोर उपहति का अपराध होगा।
इस अपराध के लिए दण्ड का प्रावधान आईपीसी की धारा 325 में किया गया है, यह अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय है इसकी सुनवाई किसी भी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है। अर्थात पुलिस थाने में डारेक्ट इस अपराध की FIR दर्ज हो सकती है एवं पुलिस थाना अधिकारी द्वारा ही जमानत की कार्यवाही की जा सकती है। इस अपराध के लिए अधिकतम सात वर्ष की कारावास और जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 325 का अपराध एक शमनीय अपराध है जानिए
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 की उपधारा (2) के अनुसार स्वेच्छा से घोर उपहति कराने का अपराध समझौता योग्य इस अपराध का समझौता न्यायालय की आज्ञा से अर्थात न्यायालय की मंजूरी से उस व्यक्ति से किया जा जा सकता है जिसे गंभीर चोट पहुचाई गई हैं।
महत्वपूर्ण जजमेंट:- 1. मोहिंदर सिंह बनाम राज्य,2. सुब्रन बनाम केरल राज्य, 3. राधेश्याम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य,4. हरियाणा राज्य बनाम मांगेराम आदि मामले में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि अगर किसी व्यक्ति ने गंभीर चोट पहुचाने का अपराध किया है और पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, मेडिकल रिपोर्ट में मात्र गंभीर चोट अर्थात, बैल्ट, डंडे, छड़ आदि से ही चोट पहुचाई थी तब आरोपी को हत्या के अपराध से दण्डित नहीं करके गंभीर चोट के अपराध की धारा 325 के अंतर्गत दोषसिद्ध किया जाना उचित होगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक ✍️बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं विधिक सलाहकार होशंगाबाद) 9827737665
इसी प्रकार की कानूनी जानकारियां पढ़िए, यदि आपके पास भी हैं कोई मजेदार एवं आमजनों के लिए उपयोगी जानकारी तो कृपया हमें ईमेल करें। editorbhopalsamachar@gmail.com