भगवान गणेश भगवान शिव और पार्वती के पुत्र तथा सभी गणों के नायक हैं। रिद्धि-सिद्धि उनकी पत्नियां तथा शुभ और लाभ उनके पुत्र है। सभी मंगलकारी कार्य उनकी कृपा के बिना असम्भव है। चतुर्थी तिथि के स्वामी-चार नंबर का स्वामी राहु ग्रह होता है जो व्यक्ति को जंजाल मे फसांता है। इसी तरह चतुर्थी तिथि भी है। भगवान गणेश इस तिथि के स्वामी है। राहु ग्रह द्वारा आया हुआ संकट भगवान गणेश की कृपा से ही सुलझता है।
Astrology Remedies- महान कष्ट और विपत्तियों से छुटकारा पाने का सफल उपाय
समस्याओं के जाल को भगवान गणेश छिन्नभिन्न कर देते है। जो व्यक्ति चतुर्थी के दिन व्रत कर भगवान गणेश की पूजा करता है, भगवान गणेश उस व्यक्ति के जीवन मे आने वाली सभी विघ्न बाधाओं को उसी तरह दूर कर देते हैं जैसे प्रचंड अग्नि के समिधा को भस्म कर देती है। शिव पुराण में आता हैं कि हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (पूनम के बाद की) के दिन सुबह में गणपतिजी का पूजन करें और रात को चन्द्रमा में गणपतिजी की भावना करके अर्घ्य दें और भगवान गणेश के द्वाद्श नामों का उच्चारण करें:-
भगवान श्री गणेश के द्वादश नाम
1.वक्रतुण्ड
2.एकदंत
3.कृष्णपिंगाछ
4.गजवक्त्र
5.लम्बोदर
6.विकटमेव
7.विघ्ननाश
7.विनायक
8.धूम्रकेतु
9.गणाध्यछ
10.भालचंद्र
11.गजानन
12.सुमुख
इन बारह नामों का उच्चारण करने से जातक के जीवन से समस्याओं का अंत होता है, विजयश्री प्राप्त होती है।
श्री गणेश चतुर्थी पूजा का लाभ
शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्षके। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा॥ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्षतक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है।
महान कष्ट तथा विपदा से छुटकारे के लिये प्रयोग
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (मतलब पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी) के दिन सुबह छः मंत्र बोलते हुये गणपतिजी को प्रणाम करें कि हमारे जीव में ये बार-बार कष्ट और समस्याएं आ रही हैं उनसे हमे मुक्ति मिलें।
श्री गणेश के चार चमत्कारी मंत्र
ॐ सुमुखाय नमह- सुंदर मुख वाले; हमारे मुख पर भी सच्ची भक्ति प्रदान सुंदरता रहें।
ॐ दुर्मुखाय नमः- मतलब भक्त को जब कोई आसुरी प्रवृत्ति वाला सताता है तो भगवान गणेश का भैरव रूप भक्तों को अभय करता है।
ॐ मोदाय नमः- मुदित रहने वाले, प्रसन्न रहने वाले। उनका सुमिरन करने वाले भी प्रसन्न हो जायें।
ॐ प्रमोदाय नमः- प्रमोदाय; दूसरों को भी आनंदित करते हैं। भक्त भी प्रमोदी होता है और अभक्त प्रमादी (आलसी) होता है, आलसी आदमी को लक्ष्मी छोड़ कर चली जाती है और जो प्रमादी न हो उसके यहां लक्ष्मी स्थायी होती है।
प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"