यदि कोई विधायक विधानसभा में प्रश्न लगाता है और उसके उत्तर में प्रशासन कोई आदेश जारी करता है तो क्या विधान सभा अध्यक्ष और सचिवालय इस बात की निगरानी करते हैं कि आदेश का पालन हुआ या नहीं। प्रश्न इसलिए है क्योंकि ऐसा एक मामला सामने आया है। अधीनस्थ अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए प्रश्न लगाया गया और आदेश जारी किया गया लेकिन पालन नहीं किया गया, बल्कि कुछ और किया जा रहा है।
यह मामला ग्वालियर संभाग के 1 जिले का है। एक विधायक जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने के बाद भारतीय जनता पार्टी में असहज महसूस कर रहे हैं, ने जिले में डॉक्टर एवं स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के अटैचमेंट को लेकर विधानसभा में प्रश्न लगाया था। जवाब में प्रशासन द्वारा सभी कर्मचारियों एवं डॉक्टरों के अटैचमेंट निरस्त करने का आदेश जारी कर दिया गया। यहां तक सब कुछ ठीक है और ऐसा लगता है कि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए, जनता के हित के लिए विधायक ने प्रश्न लगाया और प्रशासन ने आदेश जारी किया, परंतु इसके बाद बात बदल रही है।
प्रतिनियुक्ति को निरस्त करने वाले आदेश का पालन नहीं हो रहा है। एक भी डॉक्टर और कर्मचारी अपनी मूल पदस्थापना में वापस नहीं लौटा है। सूत्रों का कहना है कि विधायक महोदय को पता है कि 2023 के विधानसभा चुनाव में उनको टिकट नहीं मिलना है। वैसे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया का विरोध करने के कारण भाजपा का टिकट मिला था। अब जबकि महाराज जी भाजपा में आ गए हैं तो उनके विरोधियों को जहां फायदा मिल रहा है, वही गुंजाइश तलाशी जा रही है।
कुल मिलाकर विधायक महोदय 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। फिर चाहे वह किसी भी पार्टी के टिकट पर हो। इसके लिए बहुत सारे पैसे की जरूरत है। चंदे के परंपरागत स्रोत का 100% दोहन किया जा रहा है परंतु इससे काम नहीं चलेगा। महाराज से लड़ने के लिए या तो बड़ी पार्टी चाहिए या फिर बड़ा पैसा। बड़ी पार्टी तो महाराज के पास है, बड़ा पैसा बनाने के लिए इस तरह के खेल खेले जा रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारी को भी अच्छा है, अपने अधीनस्थ अधिकारी और विधायक दोनों पर दबाव बन रहा है। थोड़ी एक्स्ट्रा इनकम भी हो रही है।
सूत्रों का कहना है कि और भी कई प्रश्न लगे हैं, यदि विधानसभा अध्यक्ष चाहें तो जांच करवा सकते हैं। विधायकों ने कितने प्रश्न लगाए, प्रश्न के जवाब में कितने आदेश जारी हुए और आदेशों का पालन हुआ या नहीं हुआ। वैसे यह देखना विधानसभा की जिम्मेदारी होनी चाहिए, क्योंकि सदन लोकतंत्र की सर्वोच्च संस्था है। उसे अपना दुरुपयोग रोकने के प्रबंध तो करने ही चाहिए।