नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस प्रकार विवाहित महिला को स्वेच्छा से गर्भपात का अधिकार होता है ठीक उसी प्रकार अविवाहित महिला को भी गर्भपात का अधिकार है। इसका संबंध महिला से है, विवाह से नहीं है। उल्लेखनीय है कि इससे पहले तक इस बात को लेकर कन्फ्यूजन की स्थिति थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स के नियम 3बी (सी) को केवल विवाहित महिलाओं के लिए समझा जाता है, तो यह इस रूढ़िवादिता को कायम रखेगा कि केवल विवाहित महिलाओं को ही शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार है। जबकि कानूनी तौर पर इसकी कोई आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एमटीपी अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) का उद्देश्य महिला को 20-24 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने की अनुमति देना है। इसलिए, केवल विवाहित महिलाओं को अनुमति और अविवाहित महिला को नहीं, यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला 25 वर्षीय विवाहित महिला द्वारा दाखिल किया गया है। उसने बताया कि सहमति से संबंध की बात गर्भधारण हो गया था परंतु उसके साथी ने उससे विवाह करने से इनकार कर दिया है और अविवाहित महिला होने के नाते अब वह संतान को जन्म देना नहीं चाहती। उसने सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना की है कि उसे गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए।