आमतौर पर अगर हिंदी शब्दों की बात करें तो अर्थों के आधार पर समझना आसान हो सकता है लेकिन कानूनी भाषा मे इनका अर्थ ही अलग होता है। जैसे की उन्मोचन एवं दोषमुक्त दोनों रिहाई शब्द के समानार्थी हैं, अर्थात एक दूसरे के पर्यावाची होते है लेकिन कानूनी भाषा की बात करें तो दोनों शब्दों में जमीन आसमान का अन्तर है जानिए।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2 की उपधारा 28 की परिभाषा:-
जब आरोपी के विरुद्ध प्रथम दृष्टि में कोई मामला नहीं बनता है तब न्यायालय ऐसे आरोपी को उन्मोचन कर देता है। उन्मोचन के बाद आरोपी निर्दोष नहीं माना जा सकता है उन्मोचन के बाद आरोपी के खिलाफ पुनः न्यायिक कार्यवाही और जाँच प्रारंभ हो सकती है। अर्थात कह सकते हैं कि आरोपी के ठोस साक्ष्य न हो तो आरोपी को विचारण के पहले भी न्यायालय उन्मोचित (छोड़) कर सकता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2 की उपधारा 29 की परिभाषा
मजिस्ट्रेट या सत्र न्यायालय किसी अपराध के विचारण के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचता हैं कि आरोपी पर किसी भी प्रकार का अपराध नहीं बनता है तब आरोपी को दोषमुक्त कर छोड़ दिया जाता है। दोषमुक्त न्यायालय का अंतिम निर्णय होता है, दोषमुक्ति के बाद उसी अपराध के लिए आरोपी के खिलाफ दुवारा पुनः कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
इस प्रकार हम साधारण शब्दों में कहे तो उन्मोचित करना अर्थात कोर्ट द्वारा इन्वेस्टिगेशन को खारिज कर देना और इसके कारण आरोपी को छोड़ देना होता है एवं दोषमुक्त कर देना अर्थात न्यायालय में बहस एवं पूरी प्रक्रिया के बाद यह प्रमाणित हो जाना कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है, तब उसे छोड़ देना होता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article) :- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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