इंदौर। मध्य प्रदेश की इंदौर हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने रक्षा मंत्रालय की एक अपील निरस्त करते हुए उस पर 20 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। हाई कोर्ट ने कहा कि 12 साल पहले मंत्रालय ने संपत्ति मालिक प्रेमशंकर विजयवर्गीय, गोपालकृष्ण विजयवर्गीय के तीन बंगलों का अधिग्रहण किया था। इतने सालों से अधिग्रहण के बदले मुआवजा नहीं दिया।
डिवीजन बेंच ने अपील निरस्त करते हुए कहा कि या तो मुआवजा दिया जाए या फिर अधिग्रहित संपत्ति उनके मालिकों को लौटा दी जाए। वहीं, जो कॉस्ट लगाई है, उसमें से 10 हजार रुपए जमीन मालिकों को दे दिए जाएं और बाकी के रुपए विधिक सेवा प्राधिकरण के पास जमा कराए जाएं।
प्रशासनिक जज विवेक रूसिया, जस्टिस अमरनाथ केशरवानी की डिवीजन बेंच ने यह आदेश दिए हैं। विजयवर्गीय परिवार की ओर से अधिवक्ता अभिनव मल्होत्रा ने पैरवी की, जबकि रक्षा मंत्रालय की ओर से अधिवक्ता हिमांशु जोशी ने तर्क रखे थे। 2009 में रक्षा मंत्रालय ने महू में ढाई हेक्टेयर जमीन पर बने बंगलों का अधिग्रहण किया था। इनमें से एक बंगले में लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के अफसर रहते हैं, जबकि दो बंगलों को जोड़कर उसमें दफ्तर संचालित किया जा रहा है। 1 अप्रैल 2009 की स्थिति में 1 करोड़ 30 लाख 57 हजार रुपए से अधिक मुआवजा बना था। 12 साल में यह पैसा नहीं मिला। 12 फीसदी ब्याज दर के साथ यह पैसा अब सवा तीन करोड़ रुपए से अधिक हो गया है। इसके पूर्व विजयवर्गीय परिवार ने सिंगल बेंच में मुआवजे के लिए अर्जी लगाई थी।
सिंगल बेंच ने भी कहा था कि रक्षा मंत्रालय मुआवजा नहीं देने के लिए तरह-तरह के प्रयास कर रहा है। छह महीने में मुआवजा देने के आदेश दिए थे। इस आदेश के खिलाफ मंत्रालय ने अपील पेश की थी। डिवीजन बेंच ने अपील सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के फैसले को यथावत तो रखा ही, बल्कि कास्ट भी लगाई है। वहीं भुगतान न करने पर संपत्ति लौटाने के लिए भी कहा है।