प्रॉपर्टी के मामले में क्या सिविल और क्रिमिनल केस एक साथ चल सकते हैं- HC Judgement

प्रॉपर्टी से संबंधित विवाद में अक्सर पुलिस प्राथमिक सूचना प्रतिवेदन पर शिकायत दर्ज नहीं करती। कहते हैं कि यह सिविल का मामला है। क्या सच में प्रॉपर्टी से संबंधित सभी विवाद सिविल कोर्ट का मामला होते हैं। क्या किसी भी कंडीशन में क्रिमिनल केस दर्ज नहीं किया जा सकता। इस बात को समझने के लिए आइए पढ़ते हैं हाईकोर्ट के दो महत्वपूर्ण जजमेंट:-

1. सुरेश यादव बनाम शारिका बी. एवं अन्य:- 

उक्त मामले में परिवादी एवं आरोपी के बीच 350 गज भूमि खरीदने के लिए 23,80,000 रुपये का सौदा हुआ जिसमे पीड़ित व्यक्ति ने पांच लाख रुपए का भुगतान कर दिया था। भूमि परिवादी को सौपने से पहले आरोपी ने भूमि पर बने दो पक्के मकान गिरा दिए परिवादी को आरोपी ने नहीं बताया था की भूमि जिसे वह खरीद रहा है उस पर मकान भी बने हुए हैं। 

अतः आरोपी खिलाफ सिविल एवं आपराधिक दोनों प्रकार के मामले संस्थापित किये गए। इस मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 420 के अधीन छल के अपराध के साथ आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध सिविल वाद भी साथ-साथ दायर किया जा सकता हैं क्योंकि यह विधि संगत हैं। 

लेकिन इस मामले में परिवादी ने सिविल मामले एवं आपराधिक मामले में अलग अलग बयान दिए इसलिए आरोपी पर धारा 420 का अपराध साबित नहीं हो सका।

2. एन.देवेंद्रप्पा बनाम कर्नाटक राज्य:- 

उक्त मामले में आरोपी ने परिवादी को बेईमानी के आशय से एक जमीन का टुकड़ा तीन हजार रुपए में यह कहते हुए बेचा की वह उस जमीन का मालिक है, परिवादी ने दो हजार रुपए नगद दे दिये, समय अवधि होने के बाद भी आरोपी ने जमीन परिवादी को नहीं दी इस पर न्यायालय ने आरोपी को आईपीसी की धारा 420 के अंतर्गत दोषसिद्ध किया गया। 

आरोपी ने अपील लगाई कि उसका अपराध सिविल प्रकृति का था एवं न्यायालय ने आपराधिक मामले में सुनवाई की है, इस पर उच्चतम न्यायालय द्वारा कहा कि आरोपी पर सिविल एवं आपराधिक दोनों प्रकार के अपराध बनते हैं एवं न्यायालय द्वारा आरोपी को दोषसिद्ध किया जाना न्यायोचित था।

दोनों जजमेंट को पढ़ने के बाद हम कह सकती है कि अगर कोई व्यक्ति संपत्ति को बेईमानी या छल द्वारा हासिल करता है। तब ऐसी संपत्ति संबंधित अपराध सिविल एवं आपराधिक दोनों प्रकार के होंगे, लेकिन ध्यान देने योग्य बात यह भी हैं की दोनों मामले अलग-अलग नहीं होना चाहिए अर्थात आरोपित अपराध का वर्णन समान होना चाहिए।
*✍️ :- लेखक बीआर अहिरवार(पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665*
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