माध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम, 1996 सिविल विवादों में समझौता करवाता है जितने भी घरेलू मामले होते हैं धारा 1 से 43 तक समझौता योग्य होते हैं। आपराधिक मामले जो गंभीर है जिनकी एफआईआर दर्ज हो गई है या किसी मजिस्ट्रेट ने परिवाद पर संज्ञान ले लिया है तब क्या पक्षकार समझौता कर सकते हैं, क्योंकि दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 320 में समझौता(शमनीय) योग्य अपराध को अलग श्रेणी में रखा है जो असंज्ञेय(कम गंभीर) होते हैं।
दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 265(क) की परिभाषा
• पुलिस द्वारा किसी अपराध का अन्वेषण पूरा हो गया है एवं चार्ज शीट न्यायालय में प्रस्तुत हो गई है तब ऐसे अपराध जो मृत्युदण्ड से दंडनीय हो या अजीवन कारावास से या सात वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय हो इनको छोड़कर दोनो पक्षकार सौदेबाजी (समझौता, संविदा आदि) कर सकते हैं।
• अगर मजिस्ट्रेट ने परिवाद पर अपराध का संज्ञान ले लिया है एवं जांच के बाद सुनवाई भी शुरू हो गई है तब भी पक्षकार समझौता कर सकते हैं लेकिन याद रहे अपराध का दण्ड मृत्यु दण्ड, आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक का नहीं होना चाहिए।
विशेष नोट:- सौदेबाजी की धारा 265 (क) ऐसे अपराधों पर भी लागू नहीं होती है जो देश की सामाजिक, आर्थिक स्थिति को प्रभावित करता है एवं धारा 265(ठ) के अनुसार किशोर न्याय (बालको की देख रेख एवं संरक्षण) अधिनियम,2015 अर्थात 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर किया गया कोई अपराध।
साधारण शब्दों में अगर कहे तो किसी व्यक्ति के हाथों अगर कोई सड़क में वाहन चलाते हुए कोई व्यक्ति को गंभीर चोट पहुचा दे तब ऐसा व्यक्ति उस व्यक्ति से धारा 265-क के अंतर्गत सौदेबाजी कर सकता हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)