अधिनियम में किशोर बालक का तात्पर्य ऐसे बालक से है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम होगी। राज्य सरकार प्रत्येक जिले में किशोर न्याय (बालको की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम,2015 के अंतर्गत बालको की देखरेख एवं संरक्षण के लिए एक बाल कल्याण समिति का गठन करेगी यह समिति का कार्य प्रमुख रूप से यह उन जरूरतमंद बच्चों की देखरेख करना होता है जो अनाथ, लावारिस, या बेसहारा होते है।
इस समिति का पुनर्विलोकन जिला मजिस्ट्रेट द्वारा प्रत्येक तीन माह में किया जाएगा एवं अधिनियम के अध्याय 3 में राज्य2सरकार द्वारा किशोर न्यायिक बोर्ड का गठन प्रत्येक जिले में किया जाएगा इसका उद्देश्य किशोरी को विधि अधिकारों की रक्षा करना होता है एवं अधिनियम की धारा 106 के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा राज्य बालक संरक्षण सोसाइटी एवं जिला बालक संरक्षण इकाई का गठन किया जाएगा।
कुल मिलाकर अगर हम बात करे तो ये तीनो संस्थाएं अनाथ, लावारिस, बेसहारा आदि बालों को आर्थिक सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा एवं न्यायिक सुरक्षा एवं उनके भरण पोषण का कार्य करती है। अगर कोई माता पिता या अभिभावक जो शारिरिक रूप से अक्षम हैं अर्थात कोई रोग से ग्रस्त, निःशक्त, आर्थिक रूप से कमजोर है तब वह किस नियम के अंतर्गत आपने बालक (किशोरी) को बाल कल्याण समिति को सौप सकते हैं पढ़िए।
किशोर न्याय (बालकों की देख रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 35 की परिभाषा
1. ऐसे माता-पिता या संरक्षक जो शारिरिक रूप से या समाजिक कारणों से या किसी आर्थिक कमजोरी के कारण बालक का भरण पोषण नहीं कर पा रहे है तब वह आपने बालक की जिला बाल कल्याण समिति में सौप सकता है।
2. जिला बाल कल्याण समिति जाँच करने के बाद बालक को आपने पास रख लेती है एवं माता पिता या संरक्षक से दस्तावेज तैयार करवाएगी।
3.जिला बाल कल्याण समिति माता पिता या संरक्षक बालक को लेने से पहले पुनः विचार करने के लिए दो माह का समय देगी। सहमति के बाद अगर छः माह के कम उम्र के बच्चे को किसी विशिष्ट दत्तक अभिकरण में रखेगी अगर छः माह से अधिक उम्र का बालक हैं तो उसे बाल गृह में रखेगी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665