आपने अक्सर देखा होगा जब भी कोई बड़ा डिसीजन होने वाला होता है तो उस डिसीजन में शामिल लोगों को खाने पर आमंत्रित किया जाता है। सवाल तो बनता है कि किसी भी डिस्कशन या डिसीजन में खाने को इंपॉर्टेंस क्यों दिया जाता है। जबकि किसी हॉल में शांति से बैठ कर बातचीत की जानी चाहिए थी। आइए मेडिकल साइंस से अपने सवाल का जवाब तलाश करते हैं:-।
साइकोलॉजी के अनुसार कुछ भी खाना एक CALMING ACTIVITY है। यदि व्यक्ति कुछ खा रहा है तो वह उस एनवायरमेंट में काफी कंफर्टेबल फील करता है। ऐसी स्थिति में वह कभी एग्रेसिव नहीं होता। यदि कोई बहस होने वाली होती है तो ईटिंग प्रोसेस के कारण वह बहस टल जाती है। साइकोलॉजिस्ट कहते हैं कि एक सिंपल चॉकलेट भी रिलेशनशिप को मजबूत करने में काम आती है। शायद इसीलिए कॉलेज में दोस्ती की शुरुआत एक चॉकलेट या कॉफी से की जाती है।
एक बात और याद आ गई होगी। मां जब भी पापा से कोई इंपॉर्टेंट बात करना चाहती है तो वह हमेशा पापा का पसंदीदा खाना बनाती है और फिर खाना सर्व करने के बाद चुपके से वह बड़ी बात कह जाती है, जिसके बारे में अपन कई दिनों से कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। और पापा को पता ही नहीं चलता कि मां एक साइक्लोजिकल ट्रिक का यूज कर रही है। खाना खाते-खाते हां कर देते हैं।