सरकारों ने अपराधों की संख्या के अनुपात में न्यायालयों की संख्या नहीं बढ़ाई, नतीजा लाखों मामले पेंडिंग हो गए और अति आवश्यक को छोड़कर शेष मामलों में तारीख बढ़ानी पड़ती है लेकिन कुछ मामले ऐसे हैं जिनमें लंबे समय तक तारीख बढ़ाने का प्रावधान ही नहीं है। ऐसे मामलों में चट सुनवाई पट फैसला जैसी स्थिति रहती है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 260 की परिभाषा:-
कोई भी मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, महानगर मजिस्ट्रेट या हाईकोर्ट द्वारा प्राधिकृत किया गया कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट निम्न प्रकार के अपराधों का संक्षिप्त रूप में विचारण कर सकता है एवं कार्यवाही को जल्द खत्म भी कर सकता है पढ़िए:-
1. वे अपराध जो मृत्यु दण्ड से दंडनीय हैं या आजीवन कारावास से दंडनीय है या दो वर्ष के कारावास से कम अवधि से दंडनीय हैं।
2. वे अपराध जो भारतीय दण्ड संहिता के अध्याय 17 की धारा 379, 380 एवं 381 चोरी से संबंधित हैं लेकिन शर्त यह है कि चोरी की संपत्ति का मूल्य 2000/- रुपये से अधिक नहीं होना चाहिए।
3. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 411 के अंतर्गत चोरी की संपत्ति को रखने, छुपाने, प्राप्त करने से दंडनीय अपराध लेकिन उस संपत्ति का मूल्य 2000/- रूपए से अधिक नहीं होना चाहिए।
4. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 454 एवं धारा 455 गृहअतिचार अर्थात आपराधिक उद्देश्य से घर में घुसना या घर में घुस कर मारपीट करना आदि से दंडनीय अपराध।
5. भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 लोक शान्ति भंग करने के उद्देश्य से अपमान करना एवं धारा 506 आपराधिक अभित्रास से दंडनीय अपराध।
6. किसी भी प्रकार के अपराध को करने के लिए उकसाना या दुष्प्रेरण करने से दंडनीय अपराध।
7. किसी अपराध को करने का प्रयत्न करने के अपराध से दंडनीय हो।
8. पशु अतिचार अधिनियम,1871 की धारा 20 के अधीन कोई परिवाद दायर किया गया हो तब उसका विचारण भी संक्षिप्त किया जाएगा।
अर्थात उपर्युक्त सभी अपराधों का विचारण मजिस्ट्रेट (मुख्य न्यायिक, महानगर एवं हाईकोर्ट द्वारा प्राधिकृत प्रथम वर्ग) संक्षिप्त रूप एवं कम समय मे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 260 के अनुसार करेगा। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665