भोपाल। मध्यप्रदेश शासन उच्च शिक्षा विभाग के अतिथि विद्वान (एडहॉक एंप्लॉय, तदर्थ कर्मचारी) सुप्रीम कोर्ट में केस जीत गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि तलत कर्मचारी को बिना किसी कारण के हटाकर उसकी जगह दूसरा तदर्थ कर्मचारी नियुक्त नहीं किया जा सकता। इसी फैसले के साथ सरकार की गेस्ट प्रोफेसर भर्ती की प्रक्रिया निरस्त हो गई।
MP NEWS- मध्यप्रदेश में अतिथि विद्वानों को तदर्थ कर्मचारी का दर्जा
मध्य प्रदेश शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने 26 जून 2014 को एक विज्ञापन निकालकर कॉलेजों में एक साल के लिए गेस्ट प्राध्यापक की भर्ती निकाली थी। बाकायदा लिखित परीक्षा, साक्षात्कार भी लिए गए थे। नियुक्ति के बाद इन्हें एडहॉक करार दिया। सालभर बीतने के बाद सरकार ने इन नियुक्ति को निरस्त करने का फैसला ले लिया और नए सिरे से विज्ञापन जारी कर दिया।
MP EMPLOYEES NEWS- सिंगल बेंच में सरकार, डबल बेंच में अतिथि विद्वान हारे
इस पर प्राध्यापक मनीष गुप्ता व अन्य लेक्चरर ने इस नियुक्ति प्रक्रिया को हाई कोर्ट में चुनौती दी। सिंगल बेंच ने नए विज्ञापन को न केवल निरस्त किया, बल्कि यह भी कहा कि एडहॉक प्राध्यापक को यूजीसी के हिसाब से वेतनमान दिया जाए। सरकार ने इस फैसले को डिविजन बेंच में चुनौती दी। डिविजन बेंच ने सिंगल बेंच का फैसला निरस्त कर दिया। इस पर प्राध्यापकों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
एडहॉक के बदले एडहॉक नियुक्ति नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने कहा कि एडहॉक पर नियुक्त हुए प्राध्यापक कठिन परीक्षा और साक्षात्कार के बाद चुने गए हैं। जबरन नियुक्ति निरस्त कर नए सिरे से नियुक्त किया जाना है। एडहॉक के बदले एडहॉक नियुक्ति किया जाना गलत है। जिनकी नियुक्ति हुई उन्हें ही यथावत रखा जाए।
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल, वरुण रावल के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शासन के सभी विभागों में पदस्थ एडहॉक कर्मचारियों की नौकरी बची रहेगी। सुप्रीम कोर्ट का जारी आदेश कानून बन जाता है। स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, पीएचई, नगरीय निकाय, स्वास्थ्य सहित कई विभागों में एडहॉक नियुक्ति होती है। सरकार इन्हें हटाकर नई नियुक्ति नहीं कर सकेगी। कर्मचारियों से संबंधित महत्वपूर्ण समाचारों के लिए कृपया karmchari news पर क्लिक करें.