आपने अक्सर देखा होगा भारत में गर्मी के मौसम में शिवलिंग के ऊपर एक मटकी बांधी जाती है। उसमें एक छोटा सा छेद होता है और शिवलिंग के ऊपर बूंद-बूंद पानी टपकता रहता है। बहुत सारे लोगों को यह नहीं पता होगा कि शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधने का एक निर्धारित समय भी होता है। गलंतिका केवल वैशाख मास में बांधी जाती है। आइए जानते हैं कि वैशाख मास में ऐसा क्या खास होता है जो शिवलिंग के ऊपर मटकी बांधनी पढ़ती है:-
कुछ आधुनिक विद्वान इसे गर्मी के मौसम में पानी को बर्बाद करने की घटिया परंपरा बता सकते हैं, लेकिन यदि आप इस परंपरा के पीछे का लॉजिक समझना चाहते हैं तो आपको थोड़ा सा भूगोल समझना होगा। पृथ्वी पर भारत की मुख्य भूमि अक्षांश 8° 4'N और 37° 6'N और देशांतर 68° 7'E और 97° 25'E के बीच फैली हुई है। वैशाख मास में भारत भूमि से जल का वाष्पीकरण बहुत तेजी से होता है। सिर्फ नदी तालाब नहीं बल्कि मनुष्य के शरीर के भीतर मौजूद जल तत्व तेजी से कम होने लगता है।
इस अवसर पर मंदिरों में शिवलिंग के ऊपर गलंतिका बांधकर समाज को यह संदेश दिया जाता है कि शरीर को नियमित रूप से पानी उपलब्ध कराने की आवश्यकता है। दिन भर घूंट-घूंट पानी पीते रहें। गले को को सूखने ना दें। यह आपके स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है। वैशाख मास समाप्त होते ही शिवलिंग के ऊपर से गलंतिका हटाकर संदेश दिया जाता है कि मौसम सामान्य हो गया है। क्योंकि भारत में लोग भगवान के प्रति श्रद्धा भाव रखते हैं इसलिए स्वास्थ्य और पर्यावरण से जुड़े विषयों को भगवान के साथ परंपराओं में शामिल कर दिया गया है। एक कथा भी है:-
वैशाख मास पर शिवलिंग के ऊपर गलंतिका की कथा
समुद्र मंथन के दौरान जब वह खतरनाक विष निकला जिसके कारण पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो सकता था। तब उसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव को शांत रखने के लिए शिवलिंग पर जल का अभिषेक किया जाता है। वैशाख मास में यह विष अत्यंत शक्तिशाली हो जाता है और भगवान शिव को कष्ट देने लगता है। इसलिए शिवलिंग पर गलंतिका बांधकर नियमित रूप से बूंद बूंद जल से अभिषेक किया जाता है, और इस प्रक्रिया के दौरान सभी भक्तगण दिन भर घूंट-घूंट जल का सेवन करके भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था को प्रकट करते हैं। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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