स्मार्टफोन अब हर व्यक्ति के हाथ में होता है, जो एक कंप्यूटर डिवाइस है और सोशल साइट जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि के कारण न केवल वह समाज से जुड़ा रहता है बल्कि पलक झपकते ही हजारों लोगों को एक साथ मैसेज भी कर सकता है। कई बार लोग अपनी भावनाओं को ऐसे शब्दों में बयां कर देते हैं, जिसे भड़काऊ संदेश की श्रेणी में लिया जाता है और आप कानूनी कार्रवाई का शिकार हो जाते हैं। आइए जानते हैं, इंटरनेट पर शब्दों की कानूनी मर्यादा क्या होती है:-
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 (क) की परिभाषा
कोई भी व्यक्ति स्मार्टफोन या किसी भी प्रकार के कम्प्यूटर साधन या अन्य किसी इलैक्ट्रोनिक सूचना के साधन द्वारा अत्यधिक आक्रामक या धमकाने वाली सूचना भेजेगा या कोई झूठी सूचना जानते हुए कि उस सूचना द्वारा किसी प्रकार की क्षति, असुविधा, खतरा, रुकावट, अपमान, आपराधिक अभित्रास,शत्रुता, घृणा या भेदभाव फैलाने के प्रयोजन के लिए लागातार संदेश, सूचना भेजता है, वह व्यक्ति अधिनियम की धारा 66(क) के अंतर्गत दोषी होगा।
विशेष नोट:- श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ,2015- मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया कि यह धारा तब तक प्रभावी नहीं होगी जब तक भारतीय दण्ड संहिता के तहत अपराध का समावेश नहीं होगा अर्थात जब तक मानहानि, गालीगलौज वाले संदेश, धमकी वाले संदेश का होना व्यक्ति विशेष से संबंधित होना चाहिए। क्योंकि वाक़् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रत्येक नागरिकों को प्राप्त है वह अपनी बातों जो सोशल मीडिया पर शेयर कर सकते हैं लेकिन आपराधिक उद्देश्य के लिए नहीं एवं व्यक्तिगत दोष नहीं होना चाहिए।
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 (क) के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान
यह अपराध समझोता योग्य है उसी न्यायालय द्वारा जहाँ अपराध का विचारण है एवं यह संज्ञेय एवं जमानतीय अपराध हैं। सजा- इस अपराध के लिए अधिकतम तीन वर्ष की कारावास और जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
:- लेखक बी.आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665
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