FIR दर्ज होने के बाद इन्वेस्टिगेशन में किसी प्रकार की कोई असुविधा ना हो इसलिए अक्सर आरोपी को पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया जाता है। कई बार हम देखते हैं कि थाना प्रभारी इंस्पेक्टर आरोपी को कोर्ट में पेश किए बिना ही छोड़ देता है। सवाल यह है कि क्या पुलिस इंस्पेक्टर को यह अधिकार प्राप्त है कि वह कोर्ट में पेश किए बिना ही हिरासत में लिए गए आरोपी को मुक्त कर दे। आइए जानते हैं
सोहन लाल बनाम पंजाब राज्य:-
उक्त मामले में यह अभिनिर्धारित किया गया था कि FIR किसी भी अपराध के किए जाने का बाबत सूचना मात्र आवेदन-पत्र हैं। यह कोई सारभूत साक्ष्य नहीं होगा क्योंकि अपराध का अन्वेषण पुलिस को करना होता है,अर्थात FIR दर्ज होने से कोई व्यक्ति दोषी या अपराधी नहीं माना जाएगा जब तक पुलिस के पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं होंगे।
दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 169 की परिभाषा:-
अगर कोई भी पुलिस अधिकारी संज्ञेय या असंज्ञेय अपराध में शिकायत दर्ज कर लेता है। एवं उसे लगता है कि आरोपी पर लगाये गए अपराध को साबित करने के लिए कोई ठोस साक्ष्य नहीं है अर्थात आरोपी पर जिस अपराध का आरोप लगाया गया है उसे साबित कर पाना मुश्किल है तब पुलिस थाना प्रभारी आरोपी को बिना मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किये आरोपी को एक जमानत बंध-पत्र (जब आवश्यकता होगी पूछताछ के लिए थाने में पेश होना होगा इस वचन पत्र सहित) या बिना जमानत बंध पत्र के जैसा वह ठीक समझे छोड़ सकता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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