कान्हा नेशनल पार्क के सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल - tour guide kanha national park

कान्हा नेशनल पार्क विलक्षण और अद्वितीय प्राकृतिक आवास के लिए जाना जाता है। मण्डला और बालाघाट जिले की सीमा से लगा यह पार्क प्राकृतिक और पर्यावरणीय गौरव के लिए जाना जाता है। क्षेत्रफल के लिहाज से इसका देश के सबसे बड़े राष्ट्रीय पार्कों में शुमार है। कान्हा नेशनल पार्क के वो स्थान जो पर्यटकों को सबसे ज्यादा पसंद आते हैं:

फेन अभयारण्य – कान्हा नेशनल पार्क 

टाइगर रिजर्व की विशेष इकाई फेन अभयारण्य है। वर्ष 1983 में 110 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र फेन अभयारण्य घोषित हुआ। यह क्षेत्र वन्य-जीव के आवासीय स्थल के रूप में पिछले वर्षों से, काफी विकसित हुआ हैं। इस क्षेत्र में पूर्व में 38 मवेशी गाय, भैंस रहकर वन क्षेत्र को नष्ट किया करती थी। वर्ष 1997-98 के मध्य यहाँ से सभी शिवरों को विशेष मुहिम से हटा दिया, तब से यहाँ के वन काफी अच्छे हो गए हैं जिससे अब यहाँ बाघ, तेंदुआ, बायसन, चीतल, सांभर, जंगली कुत्ता आदि विचरण करते दिखाई देते है।

श्रवणताल – कान्हा नेशनल पार्क 

कान्हा से 4 कि.मी. की दूरी पर श्रवणताल है। पौराणिक मान्यता अनुसार राजा दशरथ के तीर से मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार की मृत्यु इसी स्थान पर होना माना जाता है। यहाँ कई साल पहले तक मकर संक्राति का मेला लगता था। श्रवणताल में वर्ष भर पानी रहता है, जिसके कारण नीचे स्थित मेन्हरनाला और देशीनाला क्षेत्र में पानी रिसने से हमेशा नमी बनी रहती है, जो बाघ के लिए उपयुक्त आवास है। बारासिंघा पानी में घुसकर यहाँ जलीय पौधों को अपना भोजन बनाते हैं।

किसली मैदान (चुप्पे मैदान) – कान्हा नेशनल पार्क 

पार्क का यह मुख्य प्रवेश द्वार है। वर्ष 1986-87 में यहाँ बसे लोगों को पार्क के बाहर कपोट बहरा में विस्थापित किया गया था। ढ़ाई दशक पहले यहाँ आरा मिल का ऑफिस लगा करता था।

डिगडोला - कान्हा नेशनल पार्क 

किसली परिक्षेत्र के उत्तर पूर्व पहाड़ी में एक बैलेंसिंग रॉक संतुलित चट्टान पर अपना संतुलन बनाये रखी है। इस क्षेत्र को डिगडोला कहते हैं। आदिवासियों के लिए यह पूजा स्थल के रूप में विख्यात है।

कान्हा मैदान - कान्हा नेशनल पार्क 

कान्हा के चारों ओर घास के मैदान स्थित हैं। यहाँ पहले खेती हुआ करती थी। विस्थापन में 26 परिवारों को वर्ष 1998-99 में मानेगाँव में बसाया गया। इसके बाद खेत घास के मैदान में परिवर्तित हो गये, जिसके कारण शाकाहारी वन्य-प्राणियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई।

कान्हा एनीकट - कान्हा नेशनल पार्क 

देशीनाला में बना एनीकट जल संवर्धन के साथ वन्य जीवों के लिये बहु-उपयोगी माना जाता है। इस एनीकट का निर्माण 72 साल पहले हुआ था।

चुहरी - कान्हा नेशनल पार्क 

कान्हा से 3 कि.मी. की दूरी पर चुहरी क्षेत्र है। पानी वाली जगह का चुहरी कहा जाता है। यह क्षेत्र बाघों के आवास के लिए उपयुक्त माना जाता है।

बारासिंघा फेंसिंग - कान्हा नेशनल पार्क 

इसका निर्माण पचास साल पहले हुआ था। बारासिंघा का संवर्धन इसी क्षेत्र में ही किया जाता है। इनके संबंध में अनुसंधान/अनुश्रवण आदि के कार्नीवोरस प्रूफ फेंसिंग के अंदर कुछ बारासिंघा को आवश्यकतानुसार यहाँ पर रखा जाता है। बारासिंघा की संख्या में वृद्धि होने पर उन्हें बाद में मुक्त कर दिया जाता है।

बिसनपुरा - कान्हा नेशनल पार्क 

कान्हा-मुक्की मार्ग में बिसनपुरा मैदान स्थित है। पहले इस स्थान में छोटा गाँव हुआ करता था। वर्ष 1974-76 के मध्य यहाँ से 13 परिवारों को विस्थापित करके भिलवानी वनग्राम समूह में बसाया गया। वर्तमान में इस स्थान में काफी अच्छे चारागाह विकसित हो जाने से, काफी संख्या में पर्णभक्षी आते हैं। पानी की प्रचुर मात्रा रहने से कान्हा की तरफ से पहाड़ पार से वन्य-जीव का इधर आवागमन काफी अच्छा रहता है। इस इलाके में बारहसिंगा, चीतल, बायसन, जंगली सुअर, भालू और गिद्ध दिखाई देते हैं।

सोंढर एवं सोंढर तालाब - कान्हा नेशनल पार्क 

कान्हा-मुक्की मार्ग पर सोढर मैदान स्थित है। पहले इस जगह गाँव हुआ करता था। वर्ष 1974-76 के बीच यहाँ 11 परिवारों को विस्थापित कर अन्यत्र बसाया गया। सोंढर तालाब काफी पुराना है। खेतों की जगह चारागाह विकसित हुए जो बारासिंघा के लिये उपयुक्त है। इस क्षेत्र में एक ही क्रम में पाँच तालाब है, जो ऊपर से नीचे घटते क्रम में है। इसके कारण जल संवर्धन का उचित उपयोग होने से क्षेत्र बारहसिंगा, वाइल्ड बोर, चीतल और वायसन के लिये यह उपयुक्त है।

घोरेला - कान्हा नेशनल पार्क 

सोंढर से कुछ दूरी पर घोरेला मैदान है। वर्ष 1974-76 के पहले यहाँ गाँव था जिसमें से 22 परिवारों को विस्थापित करके मुक्की एवं धनियाझोर में बसाया गया। यहाँ बारासिंघा काफी दिखाई देते हैं।

लपसी कबर - कान्हा नेशनल पार्क 

बिसनपुरा से कुछ दूरी पर मुक्की की तरफ खापा तिराहे पर, मार्ग के किनारे लपसी कबर है। लपसी वन्य-जीवों का ज्ञाता था। पूर्व में जब शिकार की अनुमति थी तब वह शिकारियों का सहयोगी था। ऐसी किवदंती है, कि लपसी, बाघ के शिकार के समय अपनी पत्नी को गारे के रूप में प्रयोग किया करता था। एक दिन शिकार के समय बाघ द्वारा उसकी पत्नी पर हमला बोलने पर वह स्वयं बाघ से भिड़ गया जिससे दोनों की मृत्यु हो गई। मान्यता यह भी है कि लपसी की कब्र में पत्थर चढ़ाने पर बाघ दिखाई देता है।

सौंफ - कान्हा नेशनल पार्क 

औरई मार्ग पर स्थित सौंफ क्षेत्र पहले गाँव था। आज से 52 साल पहले इस गाँव के 29 परिवारों को भानपुर खेड़ा ग्राम में विस्थापित किया गया था। वर्तमान में अच्छे खासे-घास के मैदान हैं। यह क्षेत्र बारासिंघा के लिये मुरीद माना जाता है। जल संवर्धन के लिए कई तालाब तथा डेम हैं। क्षेत्र में बारासिंघा और चीतल मुख्य रूप से है। वर्ष 1993 के जुलाई माह में वनरक्षक स्व. श्री चंदन लाल वाकट शिकारियों के साथ लड़ते हुए, यहीं पर शहीद हुए थे। तब से इस सर्किल का नाम “चंदन सर्किल” है। सौंफ क्षेत्र बारासिंघा के लिए सर्वश्रेष्ठ आवास स्थल है।

रौंदा - कान्हा नेशनल पार्क 

सौंफ से 4 कि.मी. दूरी पर “रौंदा” क्षेत्र स्थित है। यह क्षेत्र भी पहले गाँव था। वर्ष 1974-76 के मध्य यहाँ से 53 परिवारों को प्रेमनगर, विजयनगर और कारीवाह में बसाया गया। इस क्षेत्र में स्थानों पर चारागाह ही है। यह बारहसिंघा का आवास है।

दरबारी पत्थर-नसेनी पत्थर - कान्हा नेशनल पार्क 

चिमटा कैम्प के पीछे एक बड़े आकार का पत्थर है, जो लगभग 20 मीटर चौड़ा और 35 फीट ऊँचा है। इस पत्थर को “नसेनी पत्थर” भी बोला जाता है। इसके ऊपर छोटे-छोटे पत्थर कुर्सीनुमा रखे हैं। किवदंती है, कि दानव लोग यहाँ बैठकर दरबार करते थे।

कान्हा नेशनल पार्क कैसे पहुँचे

कान्हा नेशनल पार्क पहुँचने के लिए पर्यटक वायु मार्ग से निकटतम जबलपुर 100 कि.मी., रायपुर 250 कि.मी. और नागपुर 300 कि.मी. है। इसी तरह निकटतम रेलवे स्टेशन नैनपुर, गोंदिया एवं जबलपुर है। नैनपुर से मंडला जिले के खटिया एवं सरही गेट पहुँचा जा सकता है।

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