क्या कांग्रेस खुद को बदल पायेगी ? - Pratidin

कांग्रेस की तासीर और राहुल गांधी तेवर यही इशारा कर रहे हैं वे अध्यक्ष पद फिर से संभालने जा रहे हैं। चर्चाओं में हमेशा की तरह यह भी है कि शायद कांग्रेस नेहरू परिवार से बाहर नेतृत्व की तलाश करे। हालांकि इस प्रश्न पर सोनिया या राहुल ने अभी तक स्पष्ट कुछ भी नहीं कहा है, लेकिन घटनाक्रम यही संकेत दे रहे हैं, कि राहुल गांधी ही पार्टी के नये अध्यक्ष ही ही जायेंगे। सिद्धांत: राजनीतिक दल प्रायवेट कंपनी की तरह नहीं चलाये जाने चाहिए, पर सभी दलों में नेतृत्व संबंधी फैसले परदे के पीछे चंद लोगों द्वारा करने की परिपाटी बनती जा रही है |जिस पर बाद में मुहर लगाने की औपचारिकता भी बखूबी निभा दी जाती है।

नेहरू परिवार का आभा मंडल सिमट जाने और जनाधार वाले नेता न पनपने से आज जो रिक्तता पैदा हो गई है, वो हालिया नहीं है ।कांग्रेस और भी कई अवसर पर नेता विशेष– परिवार विशेष के दायरे में सिमटी है, परिणामस्वरूप कांग्रेस में जनाधार वाले स्वाभिमानी नेताओं के बजाय दरबारी संस्कृति पनपी और अंतत: यही दरबारी संस्कृति कांग्रेस की राजनीतिक संस्कृति बन गयी।एक अवसर पर राजीव गांधी ने कांग्रेस को सत्ता के दलालों से मुक्त कराने की बात कही थी| सोनिया गांधी और फिर राहुल गांधी को दरबारी संस्कृति में जकड़ी कांग्रेस मिली।

पहला परिवर्तन 1977 में हुआ और दूसरा 1998 में दिखा। आपातकाल के बाद 1977 में बनी जनता पार्टी की सरकार भले ही अपने दिग्गजों के बीच अहं और सत्ता महत्वाकांक्षाओं के टकराव की भेंट चढ़ गयी| दूसरा परिवर्तन १९९६ में तेरह दिनों में विदा हो गयी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का था जो 1998 में फिर 13 महीने | उसके बाद उसे दूसरा कार्यकाल भी मिला। इंडिया शाइनिंग जुमलों में फंस कर वाजपेयी समय से चंद महीने पहले ही लोकसभा चुनाव करा बैठे। सोनिया ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया, लेकिन सरकार उनके ही साये में चली उसी ढर्रे पर| संप्रग सरकार जन आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतरी, यह वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम से साबित हो गया, जब तीन दशक के बाद किसी अकेले दल के रूप में भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिला और कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गयी।

अगले चुनाव में कांग्रेस 52 सीटों तक ही पहुंच पायी। तभी चौतरफा आलोचनाओं के बीच हताश राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर नेहरू परिवार के बाहर से अध्यक्ष चुनने की नसीहत दी थी। यह इतना आसान नहीं था। इसलिए भी दरबारियों ने फिर से सोनिया गांधी को ही, अंतरिम अध्यक्ष के रूप में, कमान सौंप दी। तब से लगभग डेढ़ साल गुजर गया। कांग्रेस के सुधारकों ने सोनिया को सामूहिक नेतृत्व और आंतरिक लोकतंत्र के लिए पत्र भी लिखा, पर कांग्रेस जहां की तहां बनी रही।

पिछले साल के आखिर में ही संकेत मिलने लगे थे कि पुराने अध्यक्ष राहुल गांधी ही कांग्रेस के नये अध्यक्ष भी होंगे। राहुल ने हाल ही में जिस आक्रामक अंदाज में मोदी सरकार पर हमला बोला है, उससे भी यही संकेत मिलता है कि वह पुन: कांग्रेस की कमान संभालने को तैयार हो गये हैं। शायद मौजूदा हालात में कांग्रेस के लिए यही बेहतर भी हो, पर क्या इससे कांग्रेस की दशा-दिशा बदल पायेगी?
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !