भोपाल। भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव के लिए फाइनल रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। इस चुनाव में नेता पुत्रों की बल्ले-बल्ले होने वाली है। जहां परिवारवाद दमदार नहीं होगा वहां जमीनी स्तर के युवा नेताओं को मौका मिलेगा। तय किया गया है कि 40 साल से अधिक उम्र वाले नेताओं को पार्षद पद का टिकट नहीं दिया जाएगा।
मध्यप्रदेश में युवाओं पर फोकस क्यों कर रही है भारतीय जनता पार्टी
पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी में मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति की गई थी। इसमें भी क्राइटेरिया फिक्स था कि मंडल अध्यक्ष की उम्र 40 वर्ष से अधिक नहीं होगी। इस सब के पीछे कारण यह है कि बीजेपी 2023 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले प्रदेश में युवाओं को जाेड़ने के लिए बड़ी तैयारी कर रही है। यदि मैदानी स्तर पर पार्टी के पदाधिकारी और पार्षद युवा होंगे तो ज्यादा से ज्यादा संख्या में युवा मतदाताओं को आकर्षित कर पाएंगे। मध्य प्रदेश में पार्टी इंडिपेंडेंट होना चाहती है। पिछले कुछ दिनों में पार्टी के वरिष्ठ एवं अनुभवी नेताओं ने काफी दवा बनाने की कोशिश की है। यदि नगरीय निकाय चुनाव में प्रयोग सफल रहा तो मध्यप्रदेश में बड़ी संख्या में वरिष्ठ भाजपा नेताओं को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जाएगी।
प्रदेश महामंत्रियों को पहली लिस्ट बनाने की जिम्मेदारी
सीएम शिवराज सिंह चौहान एवं प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने पार्टी के पांच प्रदेश महामंत्रियों को युवा चेहरों की लिस्ट बनाने की जिम्मेदारी दी है। हर क्षेत्र में जहां चुनाव होने हैं, कितने युवा दावेदार हो सकते हैं एवं उनकी लोकप्रियता का स्तर क्या है, इस प्रकार के कई सवालों के जवाब तलाशे जा रहे हैं।
मध्यप्रदेश के 408 छोटे बड़े शहरों में चुनाव होने हैं
प्रदेश में 16 नगर निगम, 98 नगरपालिका और 294 नगर परिषद के चुनाव प्रस्तावित हैं। संभावना है कि मार्च के पहले सप्ताह में नगरीय निकाय चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाएगी। इसे ध्यान में रखकर ही बीजेपी अपनी रणनीति पर काम कर रही है।
MP में 53% युवा मतदाता
20 से 29 की उम्र के 27.38%
30 से 39 की उम्र के 25.58%
( 5.34 करोड़ वोटर में से 2.75 करोड़ से ज्यादा वोटर युवा हैं।)
नगरीय निकाय चुनाव में परिवारवाद चलेगा क्या
यह बात पुरानी हो गई कि भारतीय जनता पार्टी में योग्यता के आधार पर टिकट दिए जाते हैं। परिवारवाद सिर चढ़कर बोल रहा है। विधानसभा चुनाव में कैलाश विजयवर्गीय ने तो अपने बेटे आकाश विजयवर्गीय को टिकट दिलाने के लिए अपनी सीट छोड़ दी थी। परिवारवाद की दृष्टि से यह बात काफी अच्छी है लेकिन संगठन की दृष्टि से अच्छा संदेश नहीं कहा जा सकता। नेता पुत्रों की लिस्ट इतनी लंबी हो गई है कि गिनाया नहीं जा सकता लेकिन एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि हर शहर में कम से कम एक दर्जन से ज्यादा नेता पुत्र अपने पिता के कारण पावरफुल पोजीशन में है।