रिटायर्ड कर्मचारी को पेंशन में देरी पर ब्याज प्राप्त करने का अधिकार है या नहीं, यहां पढ़िए / EMPLOYEE and LAW

एक शासकीय कर्मचारी जो अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष शासन और अपने विभाग की सेवा में लगाता है रिटायर होते ही वह विभाग उसके लिए पराया हो जाता है। जिस विभाग के लिए कर्मचारी जीवन के नियम तोड़कर काम करता है उसी विभाग के अधिकारी कर्मचारी की पेंशन को स्वयं द्वारा बनाए गए नियमों में उलझा कर रख देते हैं परंतु यहां बताना जरूरी है कि सेवानिवृत्त कर्मचारी को तनावग्रस्त होने की जरूरत नहीं है क्योंकि कोर्ट और कानून उसके साथ है। यदि उसके पेंशन भुगतान में देरी होती है तो उसे ब्याज प्राप्त करने का अधिकार है और ब्याज की वसूली संबंधित अधिकारी के वेतन से की जा सकती है।

पेंशन में देरी पर ब्याज पर सबसे सशक्त रेफरेंस है पद्मनाभन प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला 

शासन द्वारा कर्मचारी को भुगतान की जाने वाली पेंशन और ग्रेच्युटी कर्मचारी की मूल्यवान संपत्ति है ना कि कोई इनाम या पारितोषिक अतः, पेंशन, उपादान देरी से भुगतान होने पर, भुगतान की जाने वाली राशि पर, बाजार दर, ब्याज आकर्षित होता है। दूसरे शब्दों में, विलंब के कारण ब्याज मिलना चाहिए। माननीय उच्चतम न्यायालय, ने पद्मनाभन के प्रकरण में, शासन के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया था कि कर्मचारी द्वारा समय पर एलपीसी नही प्रस्तुत की गईं थी। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, सामान्यतः भुगतान में विलंब, अंतिम वेतन प्रमाण पत्र एवं एनएलसी प्रमाण पत्र समय पर प्रस्तुत नही होने के कारण उत्पन्न होता है एवं दोनों से प्रमाणपत्र विभागीय डॉक्यूमेंट से सम्बंधित होते है। सेवा निवृत्ति की तिथि से विभाग अवगत होता है। अतः रिटायरमेंट के एक सप्ताह पूर्व, समस्त डॉक्यूमेंट एकत्रित कर लिये जाने चाहिये, ताकि रिटायरमेंट की तिथि को या उसके एक दिन बाद भुगतान किया जा सके। रिटायरमेंट के दो महीने समाप्त होने की तिथि से बाजार दर से ब्याज का भुगतान होना चाहिए।

चूँकि, पेंशन कोई पारितोषिक नही है, बल्कि सांपत्तिक अधिकार है। अतः पेंशन नियमों के अनुसार, निर्धारित समय के अंदर, पेंशन भुगतान की प्रक्रिया प्रारंभ की जानी चाहिए, ताकि विलंब को टाला जा सके। बिना किसी ठोस कारण या नियमों के अपालन के कारण, भुगतान में देरी के लिए कर्मचारी ब्याज का दावा कर सकता है। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, विलंब के उत्तरदायी अधिकारी से ब्याज की राशि वसूलने लेने के सरकार स्वतंत्र है। उक्त कृत्य, संबंधित के मन मे कर्तव्य बोध उत्पन्न करेगा। 
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में एडवोकेट हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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