देवपूजा वाली घंटी गोल क्यों होती है, चौकोर या आमने-सामने 2 प्लेट क्यों नहीं होती / GK IN HINDI

Bhopal Samachar
घर में पूजा के समय बजाई जाने वाली घंटी तो सभी ने देखी होगी। उसका बड़ा स्वरूप मंदिरों में देखने को मिलता है। दुनिया के किसी भी धर्म में चले जाइए उसकी पूजा प्रक्रिया में इस प्रकार का कोई ना कोई यंत्र जरूर मिलेगा। धातु में परिवर्तन हो सकता है परंतु आकार गोल ही होता है। सवाल यह है कि घंटी गोल क्यों होती है, चौकोर क्यों नहीं होती। यदि आमने सामने दो प्लेट लटका दी जाए तब भी तो ध्वनि उत्पन्न होगी। आइए इसका लॉजिक समझने की कोशिश करते हैं:- 

पूजा में घंटी के उपयोग का धार्मिक कारण 

सनातन हिंदू धर्म में मान्यता है कि पूजन प्रक्रिया के दौरान एवं आरती के समय घंटी बजाने से देवताओं के सामने आपकी उपस्थिति सुनिश्चित हो जाती है। एक मान्यता यह भी है कि पूजन प्रक्रिया के दौरान घंटी बजाने से इष्ट देव की प्रतिमा में चेतना जागृत हो जाती है और वह आपकी प्रार्थना को ध्यानपूर्वक सुनते हैं। आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए भोग को ग्रहण करते हैं।

पूजा में घंटी के उपयोग का वैज्ञानिक कारण

पूजन प्रक्रिया के दौरान एवं आरती के समय अनिवार्य रूप से घंटी बजाई जाती है।वैज्ञानिकों का कहना है कि जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में कंपन पैदा होता है, जो वायुमंडल के कारण काफी दूर तक जाता है। इस कंपन का फायदा यह है कि इसके क्षेत्र में आने वाले सभी जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं जिससे आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। 

पूजा की घंटी का आकार गोल ही क्यों होता है 

पूजन में उपयोग की जाने वाली घंटी कांसा की बनी होती है। कांसा एक मिश्र धातु है, जो ताँबे और जस्ते अथवा ताँबे और टिन के योग से बनाई जाती है। कांसा, ताँबे की अपेक्षा अधिक कड़ा होता है और कम ताप पर पिघलता है। इसलिए कांसा सुविधापूर्वक ढाला जा सकता है। क्योंकि यह तांबे की अपेक्षा अधिक कड़ा होता है इसलिए इसे चौकोर बनाने पर इसके टूटने की संभावना काफी अधिक हो जाती है। इसलिए कांसे के बर्तन भी अक्सर गोल ही बनाए जाते हैं। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि सकारात्मक ऊर्जा का स्त्रोत हमेशा गोल गुंबद के अंदर ही होता है। फिर चाहे वह मंदिर की छत पर बना हुआ गोल शिखर हो या फिर पूजा प्रक्रिया के दौरान मधुर ध्वनि उत्पन्न करने वाली घंटी। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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