दुष्काल की बेरोजगारी, सरकार की कृपा / EDITORIAL by Rakesh Dubey

कोरोना का असर कई तरह से हो रहा है । लोग बेरोजगार हुए हैं और हो रहे हैं| आम आदमी की आमदनी घट रही है । कितने लोग बेरोजगार हुए, यह आंकड़ा देने मात्र से बेरोजगार हुए व्यक्ति की वेदना को नहीं समझा जा सकता। हमारे देश में  शोध का जो तरीका है वह महज सैंपल डाटा पर आधारित है। त्रासदी में हुई प्रत्यक्ष हानि तो गिनी जाती है, मगर परोक्ष को छोड़ दिया गया है। जैसे डिप्रेशन में की गई आत्महत्या इसी परोक्ष प्रभाव का हिस्सा है। इन परोक्ष प्रभावों की जानकारी और निदान आमतौर पर सरकारी प्रयासों की प्राथमिकता सूची में नहीं होता। सवाल यह है यदि मानसिक बीमारियों के लिए उपचार की व्यवस्था है तो डिजास्टर मैनेजमेंट सिर्फ भौतिक राहत तक ही क्यों सीमित है? इसमें भावनात्मक और निजी बर्बादी को शामिल कर उसे दूर करने के उपाय भी किये जाने की दरकार है। इसके लिए हमारे सरकारी तंत्र को संवेदनशील बनने की जरूरत है। अभी सरकार का ध्यान जनता से धन्ना सेठों पर है |

इसी कारण कई कंपनियां विशाल भारतीय बाजार में बड़ी संभावना देख रही हैं। गूगल ने भी इसी दिशा में लाभ की संभावनाओं को देखते हुए निवेश का निर्णय लिया है। लेकिन यहां यह आवश्यक है कि इन उपक्रम का लाभ राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप हो और आम आदमी को भी इस लाभ में हिस्सेदारी मिले।

यूँ तो आर्थिक सुस्ती के दौर में, डिजिटल इंडिया मुहिम को गति देने के क्रम में गूगल द्वारा भारत में दस अरब डॉलर का निवेश सुकून देने वाला है, परन्तु इस निवेश की पहली किश्त रिलायंस उद्योग की डिजिटल इकाई जियो प्लेटफॉर्म के खाते में गई है। दरअसल, गूगल समूह के सीईओ सुंदर पिचाई ने इसी सप्ताह के आरंभ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के जरिये बातचीत करके निवेश की इच्छा जताई थी। निस्संदेह गूगल के डिजिटलीकरण कोष के तहत भारत में होने वाला यह बड़ा निवेश है, जिसमें ३३७५० करोड़ रुपये के निवेश से अमेरिकी दिग्गज कंपनी को रिलायंस की संगीत, मूवी एप्स और टेलीकॉम वेंचर चलाने वाली इकाई में ७.७ प्रतिशत की हिस्सेदारी मिलेगी। इससे पहले भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार के कई बड़े खिलाड़ियों ने बीते कुछ समय में जियो प्लेटफॉर्म में निवेश किया था, जिसमें फेसबुक व इंटेल कॉर्प जैसी कंपनियां शामिल रहीं। यहां यह सवाल महत्वपूर्ण है कि गूगल और जियो का यह तालमेल भारतीय उपभोक्ताओं के लिये आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा या नहीं ।

गूगल और जियो भारत में कम लागत वाले फोर-जी व फाइव-जी स्मार्टफोनों के लिये एंड्रॉयड-आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम बनाने के लिये सहयोग करेंगे, जिसके चलते भारतीय उपभोक्ताओं की जरूरतों के मुताबिक स्मार्टफोनों का निर्माण किया जा सकेगा। विडंबना यह है कि आज भी देश की एक-चौथाई आबादी के पास टू-जी फीचर वाले फोन मौजूद हैं, जिनका उपयोग स्मार्टफोन की उन्नत कार्यक्षमता के रूप में नहीं किया जा सकता।निस्संदेह देश में व्याप्त आर्थिक विषमता के चलते जिस बड़े तबके के पास ये सुविधा नहीं है, उन्हें स्वदेशी तकनीक वाले स्मार्टफोन उपलब्ध हो पायेंगे।

क्या देश के जिस कमजोर तबके को सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाली सहायता डिजिटल माध्यम से पहुंचायी जा रही है, उसे भी नई तकनीक की सुविधा मिलनी नहीं चाहिए? इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि इस बड़े निवेश के साथ जहां आत्मनिर्भर भारत का कथित संकल्प पूरा होगा, वहीं इससे देश में रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि की  उम्मीद की जा सकती है ।

लक्ष्य यह हो कि आधुनिक युग में डिजिटलीकरण की प्रक्रिया से जहां समाज सशक्त हो, वहीं उस ज्ञान को विस्तार मिले, जो हमारी अर्थव्यवस्था को गति दे सके। भारत सॉफ्टवेयर तकनीक में विश्व में सिरमौर बन सके। कोरोना काल में डगमगाती अर्थव्यवस्था को संबल देने के साथ ही, विश्व बाजार में भारत की दखल बन सके। वक्त की जरूरत है कि देश में अनुसंधान व विकास की संस्कृति का विकास हो और नवाचार को प्राथमिकता मिले। सीमा टकराव व चीन के खतरनाक मंसूबों को देखते हुए भारत के लिये जरूरी है कि हम इस दिशा में आत्मनिर्भर बने। फिर हम दुनिया को भी विश्वस्तरीय नेटवर्क देने की तरफ आगे बढ़ सकते हैं।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !