मध्यप्रदेश में पुत्र मोहि नेताओं के कारण कांग्रेस का काम खराब / MP NEWS

भोपाल। कांग्रेस पार्टी में वंशवाद तो परंपरा है। पिता की राजनीतिक गद्दी पर पुत्र की ताजपोशी नई बात नहीं है लेकिन इन दिनों मध्यप्रदेश कि कांग्रेस पार्टी में कुछ और ही हो रहा है। कांग्रेस के कद्दावर नेता अपने बेटों को वक्त से पहले उस ऊंचाई तक पहुंचाना चाहते हैं जिसका वह सपना देख रहे हैं। भले ही उनका बेटा इस के योग्य हो या ना हो। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी में युवा नेताओं का प्रवाह थम गया है।

पुत्र मोह की हद देखिए, बिना अनुभव वाले बेटे कैबिनेट मंत्री बनाए गए

आरोप तक यहां लगे हैं कि 15 साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो पुत्र मोह और भाई भतीजावाद के कारण मंत्रिमंडल में सभी को कैबिनेट मंत्री बनाने का अनोखा प्रयोग किया गया। पुत्र मोह में दो कांग्रेस नेताओं ने पार्टी से बगावत तक कर दी थी और दूसरे राजनीतिक दलों से कांग्रेस के खिलाफ अपने पुत्रों को चुनाव लड़वाया। कुल मिलाकर इन दिनों कांग्रेस में कुछ अलग तरह के प्रयोग चल रहे हैं। वरिष्ठ नेता एक कुर्सी पर जमे हुए हैं और अपने बेटे के लिए दूसरी कुर्सी हथियाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं।

कमलनाथ ने जो किया वह उत्तराधिकार तो नहीं था

पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ चार दशक से छिंदवाड़ा की राजनीति में सक्रिय हैं, नकुल नाथ उनके उत्तराधिकारी हैं यह तो सब जानते हैं परंतु स्थिति यह है कि कमलनाथ ने खुद विधानसभा सीट पर कब्जा कर रखा है और अपने बेटे को लोकसभा सीट पर बिठा दिया। जबकि वहां कांग्रेस के दूसरे लाइन के दीपक सक्सेना या विजय चौरे, अजय चौरे जैसे नेता भी हैं। 

दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे को कैबिनेट मंत्री बनवाने क्या-क्या नहीं किया 

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की टीम सबसे मजबूत है। उनकी टीम में कई वरिष्ठ, अनुभवी एवं योग्य विधायक हैं। बावजूद इसके दिग्विजय सिंह ने अपने कोटे से अपने युवा बेटे को कैबिनेट मंत्री बनवा दिया। मानना ही पड़ेगा की कांग्रेस पार्टी में हुई विधायकों की बगावत का एक कारण यह भी था। दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह का अनुभव और वरिष्ठता कम नहीं है लेकिन उन्हें भी मंत्री पद नहीं मिला।

कांतिलाल भूरिया भी अपने बेटे को पॉलिटिकल पार्टनर बना रहे हैं 

कांग्रेस पार्टी में स्वीकार्य उत्तराधिकार के नियमों के विरुद्ध जाने वाले नेताओं में तीसरा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का है। आदिवासी हितों की राजनीति करने वाले कांतिलाल भूरिया ने अपने परिवार के हितों का ध्यान हमेशा रखा। आदिवासी समाज में कई योग्य युवा नेता है परंतु पहले उन्होंने भतीजी कलावती भूरिया को आगे बढ़ाने के लिए पार्टी में पैरवी की और कुछ साल से वे अपने डॉक्टर बेटे विक्रांत भूरिया के लिए भी वही कर रहे हैं। जबकि क्षेत्र में जेवियर मेढ़ा जैसे जनाधार वाले नेता भी हैं। 

सत्यव्रत और प्रेमचंद ने तो पुत्र मोह में बगावत तक की 

कांग्रेस के जुझारू नेताओं में पूर्व सांसद सत्यव्रत चतुर्वेदी और प्रेमचंद गुड्डू की गिनती होती रही है, लेकिन पुत्र मोह मे इन नेताओं ने पार्टी से ही बगावत कर दी। सत्यव्रत ने अपने बेटे नितिन को टिकट नहीं मिलने पर समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने के बाद उसके लिए प्रचार किया। 

प्रेमचंद गुड्डू ने भी वही किया। गुड्डू ने बेटे अजीत बौरासी के लिए विधानसभा टिकट नहीं मिलने पर भाजपा का दामन थाम और उसे टिकट दिला दिया। न नितिन जीते, न अजीत। अब सत्यव्रत ने राजनीतिक संन्यास ले लिया, लेकिन प्रेमचंद गुड्डू दोबारा पार्टी में वापसी के लिए ताल ठोंक रहे हैं।

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