ऐसे ही नहीं हो जायेंगे “आत्मनिर्भर” / EDITORIAL by Rakesh Dubey

प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भरता’ व वोकल फॉर लोकल का संदेश दे दिया जब इसकी हकीकत पर विचार करते है तो पता लगता है हम बहुत कुछ आयात करते हैं| कई जरूरी चीजें तो कहाँ-कहाँ से आयात नहीं कर रहे हैं इस आयात के मामले में चीन पर हमारी निर्भरता 14 प्रतिशत से कुछ ज्यादा ही है दवाई उद्योगमोटर गाड़ी के कल-पुर्जेबिजली के उपकरणसौर ऊर्जा उद्योग और खिलौना उद्योग के लिए हम चीन पर ही निर्भर है। रसायन व उर्वरक मंत्रालय के अनुसारभारत दवा के लिए जितना कच्चा माल यानी एपीआई दूसरे देशों से मंगवाता हैउसका दो-तिहाई चीन से आता है। इसके अलावाहम करीब 60 प्रतिशत चिकित्सा उपकरण चीन से आयात करते हैं। मोबाइल उद्योग में इस्तेमाल होने वाले 88 प्रतिशत कल-पुर्जे भी चीन जैसे देशों से आते हैं। हालांकिरत्न और आभूषणभारी मशीनेंप्लास्टिकवनस्पति तेल जैसे उत्पादों के लिए हम क्रमश: संयुक्त अरब अमीरातजापानदक्षिण कोरिया और मलेशिया पर निर्भर हैं।
जाहिर है, ‘आत्मनिर्भरता’ व वोकल फॉर लोकल’ की राह में कई चुनौतियां हैं। सबसे पहले तो हमें आयातित उत्पादों का देशज विकल्प ढूंढ़ना होगा। यदि आत्मनिर्भरता की ओर हमें बढ़ना हैतो आयातित हर वस्तु का उत्पादन देश को स्वयं करना होगाफिर चाहे हम उसके कुशल उत्पादन में सक्षम हों या नहीं हों यानी देश उन क्षेत्रों में भी अपने संसाधन खर्च करेगाजहां उत्पादकता कम हैै। तुलनात्मक लाभ का सिद्धांत कहता है कि यदि अपेक्षाकृत कम लागत में गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करने वाले क्षेत्रों को कम संसाधन मुहैया कराए जाते हैंतो लाभ की स्थिति खत्म हो सकती है। 

नेहरू-इंदिरा के दौर में आत्मनिर्भरता पर केंद्रित संरक्षणवाद का हमारा अनुभव सुखद नहीं रहा। उन्हीं नीतियों के कारण विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 1985 तक घटकर 0.45 प्रतिशत रह गईजो 1950 में 2.2 प्रतिशत थी। आजादी के बाद के तीन दशकों में जीडीपी विकास दर महज 3.5 प्रतिशत थी। ऐसे मेंउन्हीं नीतियों की ओर लौटने से कोरोना-प्रभावित अर्थव्यवस्था और बिगड़ सकती है। इसलिए दवाईइलेक्ट्रॉनिक या मोटर वाहन से जुड़े जरूरी घटकों का आयात जारी रखना उचित होगा। हमें तब तक वैश्विक आपूर्ति श्रुंखला का हिस्सा बने रहना चाहिएजब तक कि ये हमारी उत्पादकता में इजाफा करते हैं। अभी तो हमें अलग-अलग देशों से आयात करना चाहिएताकि किसी एक देश से मुश्किल होने पर आपूर्ति बाधित न हो।  

एक और बड़ी चुनौती सीमा और गैर-सीमा शुल्क से जुड़ी है। अधिकारिक सूत्रों की बात माने तो आने वाले समय में सरकार निर्यातकों को अधिक लाभ देकर विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देगी और गैर-सीमा शुल्क लगाकर आयात को हतोत्साहित करेगी। आयात पर सीमा और गैर-सीमा शुल्क जैसी रुकावटें पैदा करने से हालात बिगड़ सकते हैंक्योंकि अन्य देश भी हम पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकते हैं। अमेरिका-भारत का कारोबारी रिश्ता इसका ज्वलंत उदाहरण है। ऐसे मेंआयातित उत्पादों पर ऐसी कोई बाधा अन्य देशों में भारतीय उत्पादों को नुकसान पहुंचा सकती है। यह कदम चीन के साथ भी हमारी मुश्किलें बढ़ा सकता है।

एक और चुनौती ब्रांड के मोर्चे पर भी  है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के वैश्विक ब्रांड पहले स्थानीय ब्रांड थे। मगर भारतीय ब्रांड के वैश्विक होने की राह में मुश्किल यह है कि गुणवत्ता के मामले में दुनिया आज भी हमारे उत्पादों पर भरोसा नहीं करती। इनोवेशन यानी नवाचार के मामले में भी हम अच्छी स्थिति में नहीं हैं। यह कमी तभी पूरी हो सकती हैजब हम विश्व अर्थव्यवस्था के साथ कदम बढ़ाएंगे। भारत सरकार चीन से आपूर्ति श्रंखलाओं को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती हैखासकर अमेरिकी कंपनियों को। यह आसान नहीं होगाक्योंकि आर्थिक ताकतें उनकी घर वापसी चाहती हैं। लॉजिस्टिक सेवाओंऋण सुविधा और विनियामक माहौल बनाने से जुड़े बुनियादी ढांचे भी हमें बनाने होंगेतभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को उत्पादन के लिए आकर्षित किया जा सकेगा और भारतीय ब्रांडों को वैश्विक मंच मिलेगा। जाहिर हैइसके लिए काफी काम किए जाने की जरूरत है। 
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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