पत्नी को धर्मपत्नी क्यों कहते हैं, क्या कोई लॉजिक है या बस मान-सम्मान के लिए - GK IN HINDI

पत्नी को अर्धांगिनी कहा जाता है, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है क्योंकि पति और पत्नी के मिलन से ही एक नए जीव की उत्पत्ति होती है। समाज में कुछ लोग पत्नी को पार्टनर भी कहते हैं। हो सकता है वह मजाक में कहते हो लेकिन इसका भी लॉजिक है। क्योंकि कानूनन पत्नी अपने पति की आय एवं संपत्ति में भागीदार होती है। यहां तक तो ठीक था परंतु पत्नी को धर्मपत्नी क्यों कहा जाता है। क्या इसके पीछे भी कोई लॉजिक है या फिर बस समाज में पत्नी का मान सम्मान बढ़ाने के लिए उसे धर्मपत्नी पुकारा जाता है। 

पत्नी शब्द का अर्थ क्या होता है

पत्नी शब्द के अर्थ को समझने के लिए हमें करीब 5000 साल पीछे जाना होगा। उन दिनों समाज के कई वर्गों में एक पुरुष और स्त्री को एकांत की अनुमति थी। आजकल हम इसे 'डेट' के नाम से जानते हैं। कुछ समाज ऐसे भी थे (आज भी हैं) जहां स्त्री और पुरुष को बिना विवाह एक साथ रहने की अनुमति दी जाती है। आजकल हम इसे 'लिव इन रिलेशन' के नाम से जानते हैं। जब दोस्तों के बीच उसका परिचय कराना होता है तो कई बार उसे 'लिव-इन-पार्टनर' संबोधित करते हैं। राजाओं, समाज के मुखिया और धनवान एवं प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा कई बार राजनीति और कूटनीति के चलते किसी अन्य राजा या समकक्ष के परिवार की महिला के साथ विवाह किया जाता था। एक व्यक्ति कई महिलाओं से विवाह करता था। सभी महिलाएं उसकी पत्नी कहलाती थी। दरअसल यह एक अनुबंध होता था। इस बात की गारंटी कि दोनों परिवार एक दूसरे का सहयोग करेंगे। इसके अलावा भी कई प्रकार के विवाह होते थे। लगभग सभी विवाह एक प्रकार का अनुबंध होते थे। हिंदू संप्रदाय के अलावा विश्व में ऐसे कई संप्रदाय हैं जहां आज भी विवाह एक अनुबंध या एग्रीमेंट होता है।

धर्मपत्नी शब्द का अर्थ 

हिंदू संप्रदाय में विवाह एक संस्कार भी होता है। हिंदू संप्रदाय में कुल 16 संस्कार का वर्णन मिलता है। मृत्यु के पश्चात शरीर को प्रकृति के पांच तत्वों में वापस मिलाने की प्रक्रिया को अंतिम संस्कार कहते हैं। विवाह संस्कार भी इसी क्रम का एक महत्वपूर्ण भाग है। जिस महिला के साथ यज्ञ वेदी पर बैठकर, अग्नि को साक्षी मानकर, विवाह संस्कार किया जाता है केवल उसी महिला को धर्मपत्नी कहा जाता है। धर्मपत्नी के अधिकार पत्नी से अधिक होते हैं। किसी भी प्रकार के सामाजिक या धार्मिक आयोजन में पति के समकक्ष आसन ग्रहण करने का अधिकार सिर्फ धर्मपत्नी का होता है। इतना ही नहीं धर्मपत्नी के पुत्र को ही अंतिम संस्कार में पिता की चिता को अग्नि देने का अधिकार होता है। धर्मपत्नी का पुत्र पिता के दायित्व का उत्तराधिकारी होता है। कुल मिलाकर जिस पत्नी को धार्मिक मान्यता प्राप्त हो, उसे धर्मपत्नी कहते हैं। जबकि राजनैतिक, व्यवसायिक या व्यक्तिगत लाभ के लिए किए गए विवाह के कारण जीवनसंगिनी बनी महिला पत्नी कहलाती है। 

पत्नी को अर्धांगिनी क्यों कहते हैं

क्योंकि उस काल में बहु विवाह को मान्यता थी इसलिए दोनों ही प्रकार की महिलाओं का समाज में अपना महत्व और स्थान होता था। मूल प्रश्न का उत्तर यह है कि पत्नी को धर्मपत्नी नहीं कहा जाता बल्कि दोनों अलग-अलग होते हैं। दोनों का अस्तित्व, महत्व और स्थान एक दूसरे से भिन्न होते हैं।
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