हमले: बाकी महामारियां ऐसी तो न थीं | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। प्लेग, हैजा, चेचक और स्पैनिश फ्लू से लेकर कोविड-19 तक ये महामारियां हर बार कुछ दशक के बाद आई हैं।ये सारे विश्व में आई, पर जैसा इनका स्वरूप मध्यप्रदेश के इंदौर, निजामुद्दीन मरकज दिल्ली, धारावी मुम्बई और बिहार में देखने को मिला,कुछ और कहानी कहता है। डाक्टरों पर, पुलिस पर, सफाई कर्मियों पर हमले किस बात के संकेत हैं? विश्व में कहीं ऐसा नहीं हुआ,पूरी दुनिया में कुछ लोगों ने भारत का सर शर्म से झुका दिया। केरल के राज्यपाल और इस्लामिक स्कालर आरिफ मोहम्मद खान इसे गजवा-ए- हिन्द का हिस्सा मानते हैं, वे गलत नहीं है। कोई भी समझदार आदमी डाक्टरों, चिकित्सा कर्मियों,पुलिस और सफाई कर्मियों पर न तो हमला करेगा और न हमले की तरफदारी करेगा। और उनकी बात तो बिलकुल मत कीजिये, जो मुसलसल विरोध में हैं, उन्हें हर काम में दोष नजर आता है ,सच में इन्होंने एक बड़ी आबादी को बेहद परेशान कर दिया है।

ये सब बातें हैं,बातों क्या | काम की बात ये महामारी है। महामारियों का इतिहास देखें और इनके प्रसार मार्ग का अध्ययन करें, तो समझ आता है कि ज्यादातर महामारियां सैनिकों, उद्यमियों, व्यापारियों, प्रवासियों और पर्यटकों के माध्यम से विश्व में एक से दूसरे क्षेत्र में पहले भी फैलीं और अब भी। इंडियन प्लेग महामारी, जो बंगाल में 1817 के आस-पास भयानक रूप से फैली थी,ब्रिटिश सेना की टुकड़ियों के माध्यम से बंगाल के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पहुंची।

आज जिस ‘क्वारंटीन’ शब्द का बहुत ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है, उसके बारे में एक व्याख्या यह है कि महामारियों के दिनों में नाविक अपने को बचाने के लिए जहाज खोलने और यात्रा के लिए प्रस्थान से पहले 40 दिनों तक एकांतवास करते थे। इससे साबित होता है कि महामारियों और गतिशील समुदायों, जैसे नाविक, व्यापारी, सैनिक, मिशनरी, प्रवासी और पर्यटक का आपस में गहरा संबंध है। ये गतिशील समुदाय अपने साथ बीमारी लाते ले जाते हैं, और नया विस्तार देते हैं। भारत ताज़ा उदहारण है | दिल्ली से देश भर में प्रसार |

महामारियों के इतिहास पर हुए शोध बताते हैं कि ईसा पूर्व दूसरी सदी का ‘एंटोनाइन प्लेग’ भी पश्चिम एशिया से युद्ध करके लौटे सैनिकों के जरिए रोम में फैला था। एक और अत्यंत भयानक महामारी, जिसे ‘जस्टिनियन प्लेग’ का नाम दिया गया था, वह चीन से शुरू होकर मालवाहक जहाजों के सहारे अफ्रीका और मिस्र के जरिए वर्ष 541 में कॉस्टेंटिनोपल में पहुंची थी। 14 वीं सदी का भयानक प्लेग, जिसे ब्लैक डेथ का नाम दिया गया था, वह भी यूरोप में 1340 में ‘सुदूर पूर्व’ के देशों में पैदा होकर जहाजों और उन पर काम करने वाले लोगों व व्यापारी प्रवासियों के माध्यम से फैला था।

साबित हो गया है कि महामारियां यात्रा करती हैं और यात्रा के माध्यम से पहुंचती व फैलती हैं। महामारियों के शुरूआती वाहक गरीब व आम जनता नहीं होती, ये प्राय: धनी, आगे बढे़ हुए लोग, धनाकांक्षी और आगे बढ़ने की चाह में लगे लोग होते हैं। कोरोना वायरस या कोविड-१९ के प्रसार के रूप में हमारे सामने ताजा उदाहरण है। भारत में यह यहां के संपन्न समूह, व्यापारी वर्ग, विदेश में नौकरी करने वालों, प्रवासियों, फ्रीक्वेंट फ्लायर्स, गायकों वगैरह के माध्यम से आया है। 

कुछ लोग इसकी रोकथाम के उपाय, और उसमें देरी को प्रश्नचिंह बना रहे हैं। किसी की आलोचना डाक्टरों, चिकित्सा कर्मियों, सफाई कर्मियों और पुलिस को शाबासी देने वाले निनाद पर है। सबके अपने मत हो सकते हैं, परन्तु इन सेवाकारियों पर थूकना, पथराव करना, मारपीट करना, हिंसा है और ये हिंसा सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं है। दुनिया का कोई भी मजहब इस बात की इजाजत नहीं देता। समाज की इस दुष्काल में सेवा कर रहा हर व्यक्ति अभिन्दन का पात्र है उस पर किसी भी प्रकार का हमला करने वाले स्वयं अपने बारे में विचार करें कि वे कौन हैं ? और उन्हें उकसाने वाले कौन है ? भारत को अपने बाप की धरती कहने का दम आप तभी भर सकते हैं, जब आपका आचरण एक सभ्य भारतीय सा पूरे समाज को दिखे। हिंसा के आचरण एक और बड़ी महामारी है विदेश में ये जहाँ फैली वे मुल्क बर्बाद हो गये है | इस देश को बख्शिए।
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!