भोपाल। आरक्षण कुछ जाति विशेष के लोगों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए लागू किया था परंतु यदि उस जाति विशेष के लोगों में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे मेधावी स्टूडेंट शामिल हैं तो उन्हें बेरोजगार रहना पड़ सकता है। मध्य प्रदेश की 91 महिलाओं के साथ ऐसा ही हुआ है। लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित भर्ती परीक्षा में टॉप करने के बाद भी इन महिलाओं को नौकरी नहीं मिली क्योंकि इन्हें दो प्रकार के आरक्षण का लाभ दिया गया। पहला जाति विशेष क्या आरक्षण का लाभ और दूसरा महिला आरक्षण।
Madhya Pradesh Public Service Commission ने सरकारी कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती परीक्षा (assistant professor recruitment exam) कुल 41 विषयों में आयोजित की थी। इसमें चयनित हुए 2700 उम्मीदवारों के नियुक्ति आदेश (joining letter) जारी हुए तीन महीने बीत चुके हैं। सिर्फ इन 91 महिलाओं को रोका गया है जिनके अंक नियुक्ति पाने वाले उम्मीदवारों में से ज्यादातर के मुकाबले अधिक हैं।
आरक्षित वर्ग की महिलाएं मेधावी होने की सजा पा रही हैं
अन्य सभी प्रोफेसर बनकर सरकारी नौकरी करने लगे हैं। एक पीड़ित उम्मीदवार डॉ. महजबी अंसारी कहती हैं कि हम सभी 91 महिलाएं वे हैं जो अपने-अपने विषयों की चयन परीक्षा में पहले, दूसरे स्थान पर हैं या शीर्ष 10 में हैं। अंकों के आधार पर हक बनता है और नियम भी यही कहता है कि ज्यादा अंक आए, उसे अनारक्षित वर्ग की सीट दे दी जाए।
एक अन्य पीड़ित उम्मीदवार डॉ. श्वेता हार्डिया कहती हैं कि उच्च शिक्षा विभाग की मनमानी देखिए यदि चयन या आरक्षण का फॉर्मूला बदला भी जाए तो भी यह होता कि जो कम अंक वाले उम्मीदवार हैं, वे चयन सूची से बाहर होते। हम मेरिट वाली महिलाएं तो फिर भी बाहर नहीं होती। इसके बावजूद कम अंक वालों को नियुक्ति पत्र जारी कर दिए गए। हमें ही रोका गया है क्योंकि हम महिला होकर ज्यादा अंक ले आईं। अब अफसोस है कि यदि हम मेरिट में नहीं आतीं तो हमें भी नियुक्ति दे दी जाती।
5 जनवरी को हमने भोपाल में धरना दिया। उच्च शिक्षा मंत्री से मिले। हमे रैली निकालने की अनुमति भी नहीं दी गई। अब कोर्ट में मामला जाने की बात कहकर नियुक्ति टाली जा रही है।