मध्यप्रदेश का सियासी संकट: खेल में कितने सांप और सीढ़ियां बाकी है, आइए पढ़ते हैं | MP NEWS

भोपाल। मध्यप्रदेश का सियासी संकट अब अपने अंतिम चरण पर आ गया है। कोरोना वायरस के बहाने बजट सत्र स्थगित करने की संभावना बहुत कम रह गई है। कांग्रेस पार्टी ने अपने विधायकों के लिए व्हिप जारी कर दी है। बागी विधायक CRPF की सुरक्षा में मध्यप्रदेश वापस आने के लिए तैयार हैं। 6 विधायकों के इस्तीफा मंजूर किए जा चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी आधिकारिक तौर पर सरकार के शक्ति परीक्षण की मांग कर चुकी है। आइए पढ़ते हैं इस खेल में अब कितने सांप और सीढ़ियां बाकी है।

क्या विधानसभा अध्यक्ष विधायकों को उपस्थित होने के लिए मजबूर कर सकते हैं

मध्य प्रदेश सरकार अपने ही विधायकों की बगावत से कानूनी पेचीदगियों में उलझ गई है। सरकार और स्पीकर उन्हें विधानसभा में उपस्थित होने के लिए मजबूर भी नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं है। जुलाई 2019 में जब कर्नाटक में ऐसी स्थिति बनी थी, तब सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मांग लेकर गई, लेकिन कोर्ट ने कह दिया कि मौजूदा कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

मध्यप्रदेश विधानसभा स्पीकर के पास अब क्या विकल्प रह गए हैं

जिन 22 विधायकों ने इस्तीफे दिए हैं, उन पर स्पीकर को ही फैसला लेना है। प्रतापगौड़ा पाटिल बनाम कर्नाटक सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि इस्तीफा दिए जाने के 7 दिन के अंदर स्पीकर उनकी वैधता जांचें, यदि वे सही हों तो मंजूर करें, अन्यथा खारिज कर सकते हैं। 

यदि सभी 22 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तो क्या होगा

यदि इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तो 22 विधायकों की सदस्यता चली जाएगी और कांग्रेस सरकार में शामिल सदस्यों की संख्या 121 से गिरकर 99 पर आ जाएगी। सदन की संख्या 206 और बहुमत का आंकड़ा 104 पर आ जाएगा। इस तरह कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों की सीट पर उपचुनाव होंगे। तब तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहेगी।

यदि इस्तीफा स्वीकार नहीं करेंगे तो क्या होगा

यदि स्पीकर इस्तीफा स्वीकार नहीं करते हैं तब सदस्यों को अयोग्य ठहरा सकते हैं, लेकिन यह अयोग्यता 6 महीने से ज्यादा वक्त के लिए लागू नहीं होगी। कर्नाटक के 17 बागी विधायकों के केस में अयोग्य ठहराए जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चुनाव लड़ने की छूट दे दी थी। वह आदेश मप्र की परिस्थितियों पर भी लागू होगा। इस तरह स्पीकर के द्वारा इस्तीफा स्वीकार करना या न करना, कोई महत्व नहीं रखता।

विधायकों ने पार्टी की व्हिप का उल्लंघन किया तो क्या होगा

पार्टी व्हिप जारी कर उन्हें सदन में हाजिर होने को कह सकती है (जो कि कर दिया गया है)। यदि वे फिर भी नहीं आते तो ऐसे में पार्टी उन्हें निष्कासित कर सकती है, तो उनकी सदस्यता बच सकती है। यानी सभी 22 विधायक निर्दलीय हो जाएंगे। (22 में से 6 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जा चुके हैं। अब सिर्फ 16 विधायक बचे हैं।)

क्या विधानसभा अध्यक्ष फ्लोर टेस्ट को टाल सकते हैं

स्पीकर ने विधायकों को नोटिस देकर उपस्थित होने को कहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया था कि विधायकों को उपस्थिति के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। ऐसे में फ्लोर टेस्ट को भी स्पीकर अधिक समय तक रोककर नहीं रख सकते। 

कांग्रेस पार्टी यदि अपहरण का आरोप लेकर कोर्ट चली गई तो क्या होगा

यदि कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों के अपहरण का आरोप लगाकर कोर्ट जाती है, तो हैबियस काॅर्पस के तहत केस दर्ज होगा। विधायक कोर्ट में हाजिर होंगे तभी केस खारिज होगा लेकिन कोर्ट से उन्हें सदन में हाजिर कराने के लिए फिर भी बाध्य नहीं किया जा सकेगा। 

क्या राज्यपाल मध्यप्रदेश की विधानसभा भंग कर सकते हैं 

राज्यपाल इस बात से सहमत हो जाएं कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बन गई है, तो वे विधानसभा भंग कर सकते हैं या राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं। लेकिन ऐसा होने की संभावना कम है।

क्या विधान सभा अध्यक्ष विधानसभा भंग कर सकते हैं

स्पीकर विधानसभा भंग नहीं कर सकते लेकिन राज्यपाल को इसकी सिफारिश जरूर भेज सकते हैं। सिफारिश को मानना या न मानना राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करेगा। 

यदि कांग्रेस में शेष बचे सभी विधायक एक साथ इस्तीफा दे दें तब क्या होगा

22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर होने के बाद कांग्रेस के बाकी विधायक प्रजातंत्र की हत्या का आरोप लगाकर सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दें और स्पीकर इन्हें मंजूर कर ले, तो सदन की सदस्य संख्या आधी रह जाएगी। ऐसे में यदि स्पीकर विधानसभा भंग करने की सिफारिश राज्यपाल को करे तो राज्यपाल उसे मान सकते हैं या रिक्त सीटों पर उपचुनाव की सिफारिश चुनाव आयोग से कर सकता है।

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