भारत में हिंदुओं के तीज त्यौहार को जिस तरीके से स्थापित किए गए हैं कि वह भारतीय नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा में काम आए। होलिका दहन की शास्त्रीय कथा तो आपने सुनी ही होगी लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल एक प्राचीन प्रसंग के कारण हजारों सालों से भारत में होलिका दहन किया जा रहा है या फिर इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण भी है।
दो ऋतुओं के के संगम पर होलिका दहन क्यों किया जाता है
होलिका दहन शरद ऋतु की समाप्ति के बाद वसंत ऋतु के आगमन के अवसर पर किया जाता है। भारत में यह काल पर्यावरण और मानव शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि करने वाला होता है। इन दिनों में संक्रमण तेजी से फैलता है। यदि इसे रोका नहीं गया तो हजारों लाखों लोग मर सकते हैं या गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं। भारत में हर साल होलिका दहन का वैज्ञानिक कारण यही है। इसके जरिए हम अपने आसपास पनप रहे बैक्टीरिया को खत्म करते हैं और संक्रमण को फैलने से रोकते हैं।
किस तरह की होली जलाएं कि संक्रमण फैलने से रोका जा सके
होली में जलाऊ लकड़ी और गाय के गोबर के कंडो का उपयोग किया जाता है। इसके जरिए कम से कम 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान पैदा किया जाता है। जब होलिका की आग धधकने लगती है तब उसकी साथ परिक्रमा की जाती है। इसके पीछे साइंटिफिक लॉजिक यह है कि शरीर के भीतर मौजूद बैक्टीरिया 145 डिग्री फारेनहाइट के ताप से मर जाए। और होलिका के आसपास पर्यावरण भी शुद्ध हो जाए।
होलिका दहन के बाद दूसरे दिन सुबह रंग गुलाल खेलने से पहले होली की राख को अपने माथे से लगाया जाता है। यदि 5 तरह की जलाऊ लकड़िया और देसी गाय के गोबर के कंडे मिलाकर गोली चलाई गई है तो उसकी राख बिल्कुल वैसा ही प्रभाव करती है जैसा कि नागा साधुओं के शरीर पर लिपटी हुई भस्म। यह संक्रमण को दूर करने वाली है।
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