अपना दरवाज़ा बंद पर दिमाग खुला रखें | EDITORIAL by Rakesh Dubey

नई दिल्ली। कोरोना वायरस से निजात पाने के लिए लॉक डाउन कर घर में बैठे लोगों को “रायचन्द” चैन से नहीं बैठने दे रहे हैं केंद्र और राज्य सरकारों से इतर जाकर उपाय, दवा बताई जा रही है। अमिताभ बच्चन के दावे को भारत सरकार के अधिकृत प्रवक्ता ने खंडन किया। अमिताभ बच्चन ने अपनी अपनी बात टीवी के माध्यम से रखी थी, टी वी एक माध्यम है। उससे तेज माध्यम सोशल मीडिया है और इस सब में जब आस्था का पुट लग जाता है तो कुछ भी हो सकता है। आपके अपने हित में, राष्ट्र हित में अपील है “अपने दरवाजे बंद पर दिमाग खुले रखें।” 

कोरोना का उल्लेख 12 वीं की पाठ्य पुस्तक से लेकर विभिन्न आस्थाओं की धार्मिक पुस्तकों में मिलने के दावे किये जा रहे हैं। कुछ सच भी हो सकते हैं, परन्तु प्रतिशत कम है। अफवाहों का प्रतिशत ज्यादा है एक अफवाह दो धार्मिक पुस्तकों को लेकर चल रही है कि इन पुस्तकों में एक बाल निकलेगा उसे इस तरह प्रयोग कीजिये कोरोना भाग जायेगा। विज्ञान की कसौटी पर आस्था को नहीं कसा जा सकता पर अन्धविश्वास का खंडन किया जा सकता है। फ़िलहाल कोरोना त्रासदी को लेकर जिस एक बात पर सहमति है। “ घर से बाहर बेवजह नहीं निकले।” दरवाजे बंद और दिमाग खुला रखें, इससे कोरोना और उससे बड़े वायरस अफवाह से मुक्ति मिलेगी।

देश में जब फ्लू, चेचक, हैजा, तपेदिक, प्लेग जैसे रोग सफाए का सबब बने थे तब भी अफवाहें और रायचन्दों की बिन मांगी राय आई थीं। इनसे निपटने में भी ज्यादा मुश्किलें तब आईं, जब स्पेनिश फ्लू, बर्ड और स्वाइन फ्लू, सार्स, मर्स, इबोला, जीका, निपाह और अब कोरोना जैसे विषाणु फैले थे। उन संकटों के दौरान अफवाहें जोरों पर थी, जिसने बड़े संकट देश सामने पैदा किए थे। अब वैसे हालात कम हैं, पर हैं तो। आज के हालात संभलने तक ताकीद है कि लोग न तो यात्राएं करें और न ही भीड़ का हिस्सा बनें। जहां तक मुमकिन हो, लोग सोशल डिस्टेंसिंग यानी सामाजिक दूरियां बरतें ताकि किसी भी संक्रमित व्यक्ति से कोरोना का वायरस दूसरे व्यक्ति तक नहीं पहुंचे।

सोशल दूरी का तात्पर्य आम मानव व्यवहारों में उस तब्दीली से जुड़ा है, जिसमें वह न एक साथ कहीं जमा हो और न दूसरों से सीधे संपर्क में आए। कहा जा रहा है कि एक व्यक्ति के रूप में, आप अन्य लोगों के साथ संपर्क की दर को कम करके संक्रमण फैलने का जोखिम कम कर सकते हैं। सार्वजनिक स्थानों, सामाजिक समारोहों से बचना, विशेष रूप से बड़ी संख्या में लोगों या भीड़ के साथ होने वाली घटनाओं से बचना इसी का एक पहलू है। सोशल डिस्टेंसिंग का दूसरा पहलू यह है कि जहां तक संभव हो घर से काम करें, दफ्तर में होने वाली बैठकों में वीडियो कॉल के जरिये शामिल हों और सार्वजनिक परिवहन जैसे कि बस-मेट्रो और टैक्सियों का इस्तेमाल करने से बचें।

भारत में तमाम कंपनियां अपने कर्मचारियों से घर से काम करने को कह रही हैं। पर घर से काम करने का यह अर्थ नहीं है कि लोग बाहर से खाना ऑर्डर करके मंगवाएं। बल्कि इस मामले में भी सलाह दी गई है कि कोरियर से लेकर ऑनलाइन ऑर्डर किए गए सामान को लेकर आ रहे डिलीवरी ब्वॉय के सीधे संपर्क से बचा जाए क्योंकि वह कई घरों से होते हुए आप तक पहुंचता है।

भारत में जन-घनत्व भी बहुत ज्यादा है। भारत में यह औसत 455 है, जो चीन के 148 के औसत से कई गुना ज्यादा है। संक्रमण और अफवाह इसी जन संख्या घनत्व से ज्यादा फैलती है। अफवाह पहले परिवार फिर रिश्तेदार, समाज और देश में संक्रमण से भी तेज फैलती है यह चिंता हमारे व्यवहार की है। शादी, मुंडन, मृत्युभोज के सदियों से चले आ रहे रिवाजों के बाद शहरों में बर्थडे से लेकर प्रमोशन पार्टियों का नया सिलसिला चला है। गांव-देहात की शादियों में हाथ धोने को साबुन मिल जाना बड़ी नियामत है, हैंड सेनेटाइजर तो दूर की बात है। अफवाह तो सब जगह पहुंच जाती है।

भारत में कोरोना से अब तक कुल जमा मौतों का आंकड़ा साबित करता है कि हमारी सरकार और प्रशासन ने सतर्कता बरती है। हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग के इन उपायों का एक अर्थ मनुष्य होने की कसौटियों पर खरे उतरने वाली परीक्षा से भी जुड़ा है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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